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भगवान महावीर.
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ऋषिभद्रपुत्र, मंण्डुक, सुदर्शनादि अनेक वैश्य थे। भगवान् का धर्म केवळ वर्ण या जाति बन्धनमें ही नहीं था पर विश्वव्यापि था. जैसे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य धर्म के अधिकारी थे वैसे शूद्र भी धर्म के स्वतंत्र अधिकारी थे । हरकैशी, मैतार्य जैसेने मुनिपद धारण कर मोक्षसुख के विलासी बन गये थे । जैसे भगवान् के शासनमें पुरुषों को स्वतंत्रताथी वैसे स्त्रियों को भी स्वाधिनता थी जब पुरुष ७०० कि संख्या मे मोक्ष गये तब स्त्रियों १४०० मोक्षमें गई थी कहां तो मगवान् महावीर की विशाल उदारता और कहाँ आज जैन समाज की संकुचित दृष्टि जिस का फलरूप चित्र आज हमारे सामने मौजूद है ।
भगवान् महावीर के समकालिन धर्म्म --
वेदान्तिक — भगवान् महावीर के पूर्वकालिन भारत की धार्मिक अवस्था बहुत ही भयंकर थी यज्ञ में पशुओं की बलि अपनि चरम सीमा तक पहुंच गई थी । प्रतिदिन हजारों लाखों दनि मुक निरापराधि प्राणियों के रक्त से यज्ञवेदी लाल कर ब्राह्मण अपने नीच स्वार्थ की पूर्ति करते थे । जो मनुष्य अधिक से अधिक जीवों की यज्ञ में हिंसा करता था वह बडा भारी पुन्यवान् समझा जाता था । जो ब्राह्मण पहले किसी समय दया के अववार माने जाते थे वह ही इस समय पाश विकताकी प्रचण्ड मूर्चि बन मुक प्राणियों के कोमल कण्ठ पर बूरा चलाने को निर्दय दैत्य बन बैठे थे । उस समय विधिविधान बनाना तों
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