SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर. . (६९ ) (३) चरणकरनानुयोग-जिसमें मुनियों के या गृहस्थों के आचार व्यवहार क्रिया कल्प धर्म के कानुन सुकृत करनी का सुकृत फल दुष्कृत करनी के दुष्कृत फल इत्यादि व्याख्यान है । (४) धर्मकथानुयोग-जिस में तीर्थकर, चक्रवर्ति, वलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, राजा, महाराजा, मण्डलिक, शेठ साहुकार, आदि आदि महापुरुषों के आदर्श जीवन वह भोपदेशिक उदाहरण रूप कथाओं. जिस्में नैतिक, व्यवहारिक, सामाजिक, धार्मीक आदि अनेक विषयपर सुन्दर रोचक अर्थसूचक व्याख्यान है। जैनकथा साहित्य के विषय आज अच्छे अच्छे विद्वानों का - मत है कि अपना जीवन आदर्श बनने में सब से पहला साधन है तो जैनकथा साहित्य ही है जिस की उत्तमता, विशालता, गांभी“यता वह ही जान सकता है कि जिसने जैनकथा साहित्य का अध्ययन किया है । जैनो के प्राचार धर्ममें 'अहिंसा' और तत्त्व धर्ममें ' स्याद्वाद' मुख्य सिद्धान्त है। भगवान् महावीर के उपासक राजा(१) राजगृह नगर का राजा श्रेणिक ( भंभसार ) (२) विशालानगरी का राजा चेटक (भगवान के मामा) ' (२०) काशी कौशाल के अढारागण राजा (२१) पोलासपुर का राजा विजयसेन (जिस के पुत्र . अतिमुक्तने भगवान के पास दीक्षा ली - (२२) चम्पानगरी का राजा कौणक (अजातशत्रु ) .,
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy