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(१८) जैन जाति महोदय प्रकरण दूसरा. चालीस क्रोड जनता भगवान् के मुंडा निचे जैनधर्म पालन कर अपना कल्यान कर रही थी और ऐसा होना संभव भी होता है भाजके विद्वान भी इसकी सम्मतिऐ देते है. (देखो पहला प्रकरण). भगवान् महावीर प्रभुका सिद्धान्त
भगवान महावीर का सिद्धान्त मुख्य अनेकान्तवाद अर्थात् 'स्याद्वाद' है नयानिक्षेप, द्रव्यगुणपर्याय, कारणकार्य, निश्चय व्यवहार, उत्सर्गोपवाद, गौण मौख्य, द्रव्य क्षेत्र काल भाव, द्रव्यभावादि यह सब स्याद्वाद के अन्तर्गत है. जो जो उपदेश भगवान् महावीरदेवने जनता के हितार्थ दिया उनको गणधरोने संकलित किया जैसे आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, स्थानाङ्ग, समवयांग, विवहा प्रज्ञप्ति ( भगवती), ज्ञाताधर्मकथाङ्ग उपासकदशाङ्ग, अन्तगढदशाङ्ग, अनुत्तरोत्पातिक, प्रश्नव्याकरण, विपाक और दृष्टिवाद एवं द्वादशाङ्ग । इनके उपाङ्ग रूप में स्थविरोंने भी केइ आगम रचे थे वह सब आगों चार हिस्से में विभक्त है ।
(१) द्रव्यानुयोग–जिसमें षव्य-धर्मास्तिकाय, अधमास्तिकाय, भाकाशास्तिकाय, जीवात्मा पुद्गल और काल का व्याख्यान है । जीव-कर्म मुक्ति ईश्वर लोकालोक सप्तभंग त्रिभगं चतुशःभंग वगरह वगरह का खूब ही विस्तार है।
(२) गणितानुयोग-निसमें स्वर्ग, नरक, पर्वत, पहाड, मनुष्यों के क्षेत्र लम्बा चोडा द्विप समुद्र चन्द्र-सूर्य की चाल उदयास्त वगेरह गीनत विषय है ।