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________________ भगवान् महावीर. . ( ६७ ) संशय निवारण कर वह एकादश ब्राह्मण अपने ४४०० छात्रों के साथ भगवान् महावीर के शिष्य बन गये इन्द्रने बज्ररत्नोंके स्यालमें वासक्षेप हाजर किया. भगवान्ने इन्द्रभूति और राजकन्या चन्दनबाला, आनन्दगाथापति और सुलसा श्राविका जो संघ में भप्रेसर थे उन्हपर वासक्षेप डाल चतुर्विध संघकी स्थापना करी और उनके सिवाय सहस्रों जीवोंको मुनि अर्यिकाए श्रावक श्राविका व्रतकि दीक्षा दि । इस आनन्दोत्सव के समय इन्द्रादि देवोने पुष्प वरसाये और जय जय ध्वनिके साथ सभा विसर्जन हुई * तत्पश्चात् भगवान महावीर अपने शिष्य समुदाय के साथ भूमिपर भ्रमणकर असंख्य भव्यजीवोंका उद्धार किया क्रमशः आपके उत्तम प्रन्थ रचनाके करनेवाले १४००० मुनि, ३६००० साध्वियों, बारहनत और प्रतिमाके धारण करनेवाले १५९००० श्रावक ३१८००० श्राविकाए हुई यह संख्या मुख्यतासे बतलाई गई है साधारणतया तो भगवान महावीर प्रभुके धर्मतत्त्वों को माननेवाले - * कितनेक लोग भगवान् महावीर कों ही जनधर्म स्थापक मानते हे वह उनकी गेहरी भूल हे कारण वर्तमान कालपेक्षा जैनधर्म के स्थापक भगवान् ऋषभदेव हे मन्तिम तीर्थकर महावीर के पूर्वकालिन भगवान् पाश्वनाथ हो गये थे और महावीर प्रभुके समय भी पाश्वनाथके साधु समुदाय विशाल संख्यामें मोजुद थे. भगवान् महावीरके माता पिता भगवान् पार्धनाय के श्रावक थे पार्श्वनाथ कि सन्तानमें आचार्य कैशीश्रमण वडेही मशहूर थे यह बाततो इतिहासकारोने एक ही अगबसे स्वीकार करलि कि भगवान् पार्श्वनाथ एक इतिहासिक महापुरुढ हे वास्ते महावीर प्रभुको जैनधर्म के स्थापक मानना एक अज्ञानता नहीं तो और क्या हे । हाँ महावीर भगावन् जैनधर्म के संशोधक और प्रचारक अवश्य थे--
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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