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जैन जाति महोदय प्रकरण दूसरा.
वह कर्मोदय होनेपर बलिदान जैसे निष्ठुर कर्म में बले देने से कर्म नहीं छूटता है पर तप संयमसे जीव उन कर्मों को नष्ट कर सकते है वास्ते अगर तुम सम्पूर्ण अहिंसाको पालन कर सको तो मुनित्रत को स्वीकार करो सर्व से उत्तम और जन्म मरण से शीघ्र छोडाने वाला और मोक्ष देनेवाला एक मुनिमार्ग ही है अगर ऐसा न बने तो गृहस्थधर्म बारहा व्रतों को स्वीकार करो और तत्त्वज्ञान, आत्मज्ञान, व्यवहारिकज्ञान को प्राप्त करो इत्यादि । भगवान् का उपदेश सिधा, सरल, मधुर, रोचक, भावार्थ सहित, अर्थसूचक, निःस्वार्थ केवल जनताका हितके लिये होनसे जनतापर उन उपदेशका बडा भारी असर हुवा । कारण संसार पहलेसे ही अत्याचारियों की
शान्तिसे पिडित शान्तिमय उपदेशकी इन्तजारी कर रहा था वह ही शान्ति भगवान् महावीर के कुंडा नीचे मिल गई फिर तो पूच्छन । ही क्या. संसार एकदम पलटा खा गया मानो उन्हके अन्तःकरण में महावीर मूर्त्ति विराजमान हो गई ।
चतुर्विध संघ की स्थापना -
पापा नगरी के अन्दर एक बडा भारी 'यज्ञ' की तय्यागयें हो रही थी बहुतसे यज्ञाध्यक्षक एकत्र हुवे थे जिसमें इन्द्रभूति, अभिभूति, वायुभूति, व्यक्त, सौधर्म्म, मण्डित, मौर्यपुत्र, अकम्प, अचलाभ्रात, मेतारज, और श्रीप्रभास एवं एकादश मुख्य थे. भगवान् महावीर की विभूति और देवादिसे परिपूजित देख मारे द्वेष ईर्षा के क्रमश: ऐकेक ऋषि भगवान् के पास आये और बह शान्ति के समुद्र में डूब गये और अपने अपने मनका