________________
भगवान् महावीर.
( ६५ )
आदि समवसरण कि रचना करी. भगवान् के चार अतिशय तो जन्म समय ही होते है; एकादश कैवल्योत्पन्न समय और एकोन्नीस देवकृत एवं चौतीस अतिशय अष्टमहाप्रतिहार हुवा करते है तत्पश्चात् " तीर्थायनमः " तीर्थ को नमस्कार कर भगवान् सिंहासनपर विराजमान हो धर्मोपदेश देना प्रारंभ किया. भगवान् के उपदेश के लिये क्या तो देव, देवेन्द्र, क्या मनुष्य, विद्याधर, क्या क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, क्या शूद्र, क़्या राजा, रांक, क्या अमीर, गरीब, क्या खिये क्या पुरुष इतनाही नहीं पर पशु पक्षी तक को भी धर्म के अधिकारी बननेकी स्वतंत्रता दे दी थी. धर्म के लिये वर्ण व जाति और उच्च नीचका वहां विल्कूल भेद नहीं था. भगवान्ने अपने उपदेश में सबसे पहला " अहिंसा परमो धर्मः " का खूब विवेचन किया अन्तमें कहा कि जो जीव अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण करता है उसका मूल कारण 'हिंसा' ही है । असत्य, चौर्य, कुशील, ममत्व, क्रोध, मान, माया, लोभादि अनेक पाप हिंसा से ही पैदा हुवे है हिंसा के भी अनेक भेद है । द्रव्यहिंसा, भावहिंसा, निश्वयहिंसा, व्यवहारहिंसा, स्वरूपहिंसा, अनुबन्धहिंसा, अर्थादंडहिंसा, अनर्थादंडहिंसा. इनका विवरणके पश्चात् भगवान्ने फरमाया कि सब चराचर प्राणियों कों अपने अपने प्राणप्रिय है उनको तकलीफ पहुँचाना महान् पाप है तो फिर इरादापूर्वक हजारों लाखों प्राणियों का बलिदान करदेना इनके सिवाय अधर्म ही कौनसा है ? हे भव्यों ! रूधिर का कपडा रूधीरसे कभी साफ नही होता है जिस हिंसा के जरिये कर्मोपार्जन किया
"