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भगवान् महावीर.
( ६३ )
तपश्चर्या के नाम संख्या तप दिन पारणा दिन सर्व दिन
छ मासी तप
१
म्यून छ मासी तप
१
चतुर्मासी तप
तीनमासी तप
अढाई मासी तप
दो मासी तप
दोढ मासी तप
एक मासी तप
पाक्षीक तप
अष्टम तप
छट्ठ तप
~
२
१८०
१७५
१०८०
१८०
१५०
३६०
&&
१२
७२
१२
३६
२२९ ४५८
३६०
१०८०
१
ર
७२
१२
२२९
१८१
१७६
१०८९
૨૦૨
१५२
३६६
९२
३७२
११५२
४८
६८७
यह सब तप प्रतिज्ञापूर्वक ही किया था । ध्यान, मौन, आसन, समाधि, आत्मचिंतवन कर अन्त में शुक्लध्यानरूपी जाज्वल्यमान अग्नि में चार घनघाति ( ज्ञानावर्णिय, दर्शनावर्णिय, मोहनिय, अन्तराय) कर्मों को जला के कैवल्यज्ञान दर्शन को प्रगट कर लिया ।
भगवान् महावीर को केवल्यज्ञान -
जिस ज्ञानके अभाव दुनियों अज्ञानान्धकार में गोता खा रही है, जिस ज्ञानके अभाब जनता मिध्या रूढियों के वशीभूत हो अथाग