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(५६) जैन जाति महोदय प्रकरण दूसरा. भगवान् महावीरको उपसर्ग।
यों तो भगवान महावीर साधिक बारह वर्ष तपश्चर्या करी थी वह सब काल उपसर्गमेही निर्गमन हुवा था. परन्तु यहांपर हम कतीपय ऐसे उदाहरण बतलादेना चाहते है कि जिन जगत्पूज्य महान् प्रात्माने आत्मकल्यानके लिये कैसे कैसे महान संकटोंका सामना किया कुदरतका सिद्धान्त है कि जो मनुष्य अपना करज चुकानेके लिये प्रामन्त्रण करते है तब सबके सब लेनदार आके खडे हो जाते है इस नियमानुसार भगवान महावीर अपने कर्मोका करजा चुकानेके लिये पैरोपर खडे हवे है तब उनपर कैसे हृदयभेदी महाभयंकर उपसर्ग आपडा कि जिनको पडनेसे ही हमारी आत्मा कांप उठती है पर भगवान् के उत्कठ बल व साहसीकता के सामने वह उपसर्ग ऐसे तो फीके पड गये थे कि सूर्य के प्रबल प्रकास के सामने चन्द्र का तेज झांखा पड जाता है. तथा च
(१) भगवान के दीक्षा समय शरीर पर चन्दनादि सुगन्धि पदार्थो का लेप न किया था उस सुगन्धसे आकर्षित हो भ्रमर गण शरीर का मांस काट खाया दूसरी तरफ भगवान का अद्भुत रूप देख कामातुर ओरतोंने अनुकुल उपसर्ग किया पर उन शान्त मूर्ति महावीरने दोनोंको समभावसेही देखा अर्थात् मांस काटनेवाले भ्रमरो पर द्वेष नहीं ओर हावभाव करनेवाली स्त्रियोंपर राग नहीं वह ही तो महावीरकी वीरता है।
(२) एक सनय कुमार ग्रामके निकटवर्ति भगवान पर अज्ञान गवालोंने मारणेका हुमला किया. उस समय शकेन्द्रका