________________
भगवान् महावीर की प्रतिज्ञा. (५५) समय भी आ पहुंचा है वास्ते दीक्षा धारण कर लोकमे शान्ति वरतावे। इसपर भगवान् एक वर्ष तक महा दान देकर नर-नरेन्द्र । देव देवेन्द्र के महामहोत्सवपूर्वक व इन्द्रने खांधेपर रखा हुवा एक वनके साथ आप एकले मागशर कृष्ण दशमिके रोज भगवान् महावीरने दीक्षा धारण की उसी समय आपश्रीकों चोथा मनःपर्यव ज्ञानोत्पन्न हुवा । भगवान् महावीरकी प्रतिज्ञा ।
भगवान महावीरने जिस दिन दीक्षा धारण करी उसी रोज इस नाशमान शरीरकी बिलकुल परवाह न करते. हुवे ऐसी कठिन प्रतिज्ञा कर ली कि कोइभी देवमनुष्य तीर्यच संबंधी उपसर्ग हो वह मुझे सम्यक् प्रकरसे सहन करना कारण ऐसा करनेसेही दुष्ट कर्मोका नाश हो सच्चे सुखकी प्राप्ति होगा । जो वस्त्र दीक्षा समय इन्द्रने खांधेपर रखा था वह साधिक एक वर्ष रहा बाद भगवान् दिगम्बरावस्थामें स्वतंत्र विहार करने लगे पर भगवानका अतिशय ऐसा था कि वह अन्यकों नग्न नहीं दीखते थे उनका दृश्यही अलौकीक था । भगवान्ने प्रायः द्रव्य ओर मावसे मौन व्रतकाही सेवन किया था. कारण उच्चात्माओंका एक यह भी अटल नियम है कि जब तक अपना कार्य सिद्ध न हो जाय, तब तक दूसरोंका कल्यान करनेमे प्रवृत्ति नही करते है वात भी ठीक है कि ऐस करने से ही अन्य कार्यों में सफलता प्राप्त कर शक्ते है इस नियमानुसार भगवान महावीरने छदमस्थावस्थामे आदेश उपदेश व दीक्ष देनेकी उपेक्षा कर पहला अपने मात्माका कल्याण करनाही जरूरी समझ मौनव्रत धारण किया था.