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________________ भगवान् महावीर की युवावस्था. स्वाभाविक बात है व भगवान् महावीरकी बाल्यावस्था और उनकी दिनचर्य विषय इतनाही लिखना पर्याप्त होगा कि उनका जीवनजन्मसे ही पवित्र था और पवित्र रितिसे ही बाल्यावस्था व्यतिक्रम हुई थी। भगवान महावीर की युवकावस्था । भगवान् महावीर बाल्यावस्था को प्रतिक्रम के प्रागे पैर रखा तो एक तरफ युवकावस्था खुल उठी तब दूसरी ओर आत्मभाव विकाशीत हो रहा था संसार के मोहक पदार्थों से आप बिलकुल विरक्त थे इतना ही नहीं पर श्राप के माता पिता और सज्जनों को भी आपके विरक्तपने के चिन्ह स्पष्ट रूपसे देखाइ दे रहे थे तथापि माता पिताने पुत्र स्नेह के वशीभूत हो वर्द्धमान के विवाह की कौशिष करना प्रारंभ किया | इधर महाराज समरवीरने पनि 'यशोदा' नाम की कन्या का लग्न प्रभु वर्द्धमान के साथ करदेने का प्रस्ताव सिद्धार्थराजा के पास भेजा । भगवान महावीर की इच्छा न होनेपर भी मातापिता की श्राज्ञा भंग करना अनुचित समझ यशोदा राजकन्या के साथ विवाह किया, दूसरा प्रकृति का यह भी अटल नियम है कि पूर्व संचित शुभ व अशुभ कर्म सिवाय भोगवने के छूट नहीं सकते है फिर भीं ज्ञानियों के लिये भोग भी कर्मनिर्जरा का हेतु होता है महावीर प्रभु जलकमलवत् संसार में रहै श्राप के सन्तान " प्रियदर्शना नामक एक पुत्री हुई वह जमाली राजकुमार को व्याही थी भगवान गृहस्था "वास में रहते हुवे भि अपना जीवन एक पवित्र योगि की तरह व्यति क्रम कर रहे थे.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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