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भगवान् महावीर.
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वह बल कहां गया जो मुंडकों से भूमि श्राच्छादित करता था. यह सुन मुनि अपने पापा को कब्जे नहीं रख सका उस गाय को दोनो शींग पकड चक्र की माफिक प्राकाश से गुमा के फेक दी और निधान किया कि मेरे तप संयम ब्रह्मचार्य का फल हो तो भविष्य में महान पराक्रमी हो विशाखानन्दी की घात करूँ ? वहां से कालकर ।
( १७ ) महाशुक्र देवलोक में देवता हुवा | वहांसे
(१८) पोतनपुर नगर के राजा प्रजापाल कि मृगावती राणि की कुक्षि से त्रिपृष्ट वासुदेव का जन्म हुवा और विशाखानन्दी का जीव भवभ्रमन करता हुवा तुंगगिरीपर केशरीसिंह हुवा. उसको प्रतिवासुदेव श्रश्वग्रीव शालि के क्षेत्र मे त्रिपृष्टने मारके बदला लिया. क्रमशः दक्षिण भारत के तिन खण्डकों विजय कर त्रिपृष्टवासुदेव सम्राट् राजा हुवा एक समय त्रिपृष्ट अपने शय्या पालक को श्राज्ञा दी थी कि जब मुझे निन्द्रा या जावे तब गायन बन्द कर देना पर कानोंको प्रिय होने के कारण वासुदेव कों निद्रा लगजाने पर भी शय्या पालकने गायन बन्ध न किया इतने गायन हो ही रहा था इस पर गुस्सा हो दुरात्मा हमारी आज्ञा से भी तुमरे कानों को गायन प्रिय लगा बस उसके कानों में गर्मागर्म गाला हुवा सीसा डलवा निकान्चित कर्मोपार्जन किया. वहां से काल कर
में
त्रिपृष्ट जागृत हुवा तो
त्रिपृष्टने हुकम किया रे
( १६ ) सातवी नरकमेगये | वहांसे
( २० ) महा क्रूरवृतिबाला सिंहका भव किया । फिर