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(४८) जैन जाति महोदय प्रकरण दूसरा. राजाने एक षट यंत्र रचा कर सभा में यह प्रस्ताव किया कि पुरुषसिंह नाम का सामन्त हमारी प्राज्ञा का भंग कर देश में लुटपाट कर रहा है वास्ते सैना तैयार कि जाय की शीघ्रता से उनका दमन करे ? यह बात विश्वभूतिने सुनी तब बडा पिताजी से अर्ज कर वह भार अपने शिर ले मयसैना के वहां गया । वहांपर पुरुषसिंह को सर्वथा अनुकूल देख वापिस लोट आया. रास्ता में क्या देखता है कि पूर्वोक्त उद्यान में विशाखानन्दी क्रिडा कर रहा है इसपर विश्वभूतिने सोचा कि यह षडयंत्र हम को उद्यान से निकालने का ही था. बस मारा क्रोध के एक वृक्ष पर मुष्ठि प्रहार किया तो उस के सब पुष्प भूमिपर गिर गये. द्वारपाल को संबोधन कर कहा कि प्रगर बडा पिताजी पर मेरी भक्ति न होती तो तुमारे मुंडकों से भमि आछादित होनेमे इतनी ही देर लगती की जितनी इन वृक्ष के पुष्पों के लिये लगी है पर इस विषमय भोगकी अब मुझे परवाह नहीं है ऐसा कह विश्वभूतिने संभूति मुनि के गस दीक्षा ग्रहन करली ! इस बातको सुन राजा सहकुटम्ब जाके मुनि को बन्दन कर राज का मामन्त्रण किया ? विश्वभूति मुनिने. अस्वीकार कर बदले मे धर्मोपदेश दिया ।
विश्वभूति मुनिने ज्ञानाध्ययन के पश्चात् घोर तपश्चर्या करी कि जिन्ह का शरीर अति कृश हो गया. एक समय मथुरा नगरी में भिक्षा के लिये जा रहा था रास्ता मे एक गायने मुनि को भूमिपर गिरा दिया उस समय विशाखानन्दी विवाह प्रसंग मथुग में पायाथा वह मुनि को गिरता हुवा देख हांसि के साथ बोल उठा रे मुनि तेय