________________
भगवान् महावीर के पूर्वभव.
( ४७ )
( ६ ) स्थूणा नगरी में त्रिदंडीक भव किया । वहांसे ( ७ ) सौधर्म देवलोक में देवता हुवा | वहांसे ( ८ ) चैत्य सन्निवेश में अग्निद्योत त्रिदंडी हुवा | ( ९ ) ईशान देवलोक में देवपने उत्पन्न हुवा | (१०) मन्दिर सन्निवेश में अग्निभूति त्रिदंडी हुवा । ( ११ ) तीसरा देवलोक में देवतापने उत्पन्न हुवा । ( १२ ) श्वेताम्बी का नगरी में भारद्वीज त्रिदंडी का भव । (१३) चोथा देवलोक में देवता हुवा | वहांसे
( १४ ) गजगृह नगर में स्थावर त्रिदंडी हुवा | (१५) ब्रह्म देवलोक में देवतापणे उत्पन्न हुवा |
(१६) राजगृह नगर के राजा विश्वनन्दी की प्रियङ्ग रांगी से विशाखानंदी नामका पुत्र हुवा और युवराज विशाखभूति की धारणी राणीसे विश्वभूति का जन्म हुवा ( जो महावीर का जीव पंचम स्वर्ग से अवतीर्ण हुवा ) विश्वभूति तारूणावस्था मे अपने अन्तेउर सहित पुष्पकारण्डोद्यान में क्रिड़ा कर रहा था. वहां पर विशाखानन्दी मी माया पर पहले से विश्वभूति उद्यानमे था वास्ते वह बाहार ठहर गया. इतने मे प्रियङ्गराणिकी दासिये पुष्प लेनेको श्रई । एक को बाहार दूसरे कों अन्दर देख वह वापिस लोट गई और महाराणि कों सब हाल सुना दिया इस पर प्रियङ्ग राणिने अपने पुत्र का अपमान डुवा समझ क्रोधित हो राजा से इन का बदला लेने का कहा ।