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(१६) जैन जाति महोदय प्रकरण दूसरा.
अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर।
अनादिकाल से प्रवाहरुप संसार चल रहा है अनंते जीव अपने २ कर्मोनुसार मवभ्रमन करते है उन में महावीर भी एक थे उन्होंने किस भव में सम्यक्त्व प्राप्त कर किस किस साधनों से संसा. री प्रात्मा से परमात्मा पद हासिल किया ! भगवान महावीर के पूर्व भव ।
(१) पश्चिमविदेह-जयन्ति राजधानी के अन्तर्गत पृथ्वीप्रतिष्ट प्रामपति नयसारने रास्ता च्यूत मुनियों को भक्ति पूर्वक भोजन दे मार्ग बतलाया. बदले में मुनियोंने नयसार को धर्मोपदेशद्वारा धर्म ( मोक्ष ) का मार्ग समझाया. फलरूप में नयसार को बोधबीज (सम्यक्त्व रत्न ) की प्राप्ति हुई अन्त में नमस्कार पूर्वक कालकर वहांसे
(२) सौधर्म देवलोक में देवता हुवा-वहां से चवके
( ३ ) भरतचक्रवर्ति का पुत्र मरीचि हुवा जिस का परिचय भगवान रूषभदेव के अधिकार में आप पढ चुके है । वहांसे
( ४ ) ब्रह्मदेवलोक में देवतापने उत्पन्न हुवे । वहांसे
(५) कोल्लक सन्निवेश में त्रिदंडी का भवकर बहुत कर्मोपार्जन किया और संसार में परिभ्रमनभी किया वह भव इस गीनती के बाहार है।