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भगवान पार्श्वनाथ. . (५) मंडित था. समाजमें त्राहि त्राहि मच गइ थी भारत वर्षके सामाजिक
और धार्मिक विषय के लिये. इतिहाससे पता मिलता है कि यह काल बडा ही भीषण था. समाज के अन्तर्गत अत्याचार कि भठ्ठी धधक रही थी धर्मपर स्वार्थ का राज्य था कर्तव्य सत्ताका गुल्म था धर्म कि विश्रृंखला हो इतने तो टुकडे टुकडे हो गये थे कि जिसकी भयंकरता जनताकी आबादीके बदले महान् हानी के रूप देखाई देने लग गइ थी पशुवध हिंसामय यज्ञकर्म तो भारत व्याप्त हो गया था, निरापराधि असंख्य पशुओंका रूधीर से नदिये चल रही थी इत्यादि हाहाकार मच रहा था बस कुदरत एक ऐसा महा पुरुषकी राह देख रही थी वह ही भगवान महावीर था कि जिनोंने अवतार धारण कर उक्त सब बुरी दशा को अपनि बुलंद अवाज द्वारा शान्तकर धार्मिक व सामाजिक सुधारा के साथ भारतवर्ष शान्तिका साम्राज्य स्थापन कीया जिस भगवान् महावीर प्रभु का पवित्र चरित्र बुद्धि अगम्य है आज पूर्वीय पाश्चात्य इतिहासकारोंने भगवान महावीर के विषयमें बडे बडे प्रन्थ निर्माण कर मुक्त कण्ठसे प्रशंसा करी है महावीर भगवान् के विषयमें प्रचलीत भाषामे भी अनेक पुस्तके छप चुकी है वास्ते यहां पर मैं मेरा उपदेश्यानुसार संक्षिप्त ही परिचय करवाना समुचित्त समझता हु.