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जैन जाति महोदय.
अवतीर्ण हुवे क्रमशः पौष वद १० को जन्म हुवा नौहाथ - नीलवर्ण-सर्पलंच्छनवाला शरीर - पाणिग्रहण करने के बाद पौष वद ११ को ३०० पुरुषों के साथ दीक्षा ग्रहन करी. तपश्चर्यादि कर चैत वद ४ को कैवल्यज्ञान प्राप्त कीया. आर्यदीनादि १६००० मुनि, पुष्पचूलादि ३८००० श्रावक १६४००० श्राविकाए ३३६००० कि सम्प्रदाय हुई सर्व एक सौ वर्षका श्रायुष्य पूर्णकर सम्मेद सिखरपर निर्वाण हुवे बाद आपका शासन २५० वर्ष तक चलता रहा ।
आप कुमारपद थे उस समय एक कमठ नामका तापस आया था. उसकि दुष्कर तपस्या देख नगर के लोग दर्शनार्थ गये पार्श्वकुमार भी गया जो तापस के पास काष्ट जलता था उसके अन्दर एक सर्प था भगवान् ने अवधिज्ञानसे देख उसको कष्टसे निकालके अ. सि. आ. उ. सा. मंत्र सुनाया जिसे वह मरके धरणेन्द्र हुवा और तापसका बडा भारी उपहास हुवा -
आपका निर्वाण होनेके स्वल्प ही समय में भारत वर्षका हाल इस कदर हो गया था कि भारतीय समाज के अन्तर्गत एक भयंकर विश्रृंखला उत्पन्न हो रही थी ब्राह्मण लोक अपने ब्राह्म
त्व को भुल गये थे स्वार्थ के वशीभूत होकर वह अपनि सब सत्ताओं का दुरुपयोग करने लग गये थे क्षत्रिय लोग भी ब्राह्मणों के हाथ कि कटपुतली बन अपने कर्त्तव्य से चुत हो गये थे समाजका व राजका प्रबन्ध अत्याचारों के हाथ मे जा पडा था और सत्ता अहंकार कि गुल्म हो गइ थी राजमुगट अधर्म के शिरपर