________________
जैन जाति महोदय
राज कर्मचारीयुक्त कमठके आश्रम स्थानपर पधारे हुए प्रभु पार्श्वकुमारने दयारसपूरित शद्बोंसे कहा, कि हे कमठ यह अज्ञान हिंसामय तपस्या छोड; ज्ञानवश प्रभूने लकडेको धूनीसे निकलवायके, चिरवाया तो अर्धदग्ध सर्प
बहार आया; सर्प भगवान भाषित नवकार मंत्रका ध्यान लगाता हुआ स्वगको सिधार गया.