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________________ (४२) जैन जाति महोदय. सुमित्रा राणिसे लक्षमण नामका वासुदेव तथा रावण नामका प्रतिवासुदेव हुवा अन्य लोक रावण के दस मस्तक मानते है वह गलत है कारण रावण के पूर्वजोसे नौ माणकवाला हार था वह धारण करता था तब माणकके प्रभावसे नौ मुंह और एक असली एवं दश मस्तक दीखाइ देते थे. रावण एक कटर जैनधर्मि राजा था ब्राह्मणोंके यज्ञको इसने केइवार ध्वंस कीया था वास्ते हि वह लोक रावण को राक्षस लिखकर कहते है कि राक्षसों यज्ञ विध्वंस कीया करते थे-रामचंद्र श्रीकृष्ण और भगवान् ऋषभदेव परम जैन थे उनको ब्राह्मणोंने अपने शास्त्रोंमे अवतार लिखा है वह कहांतक ठीक है इनके बारामें में आगे ठीक प्रमाणों से बतलाउंगा कि यह महापुरुष कटर जैन थे आपके शासनान्तरमें महाराज हरिसेन नामका दशवा चक्रवर्ती राजा हुवा ( देखो यंत्रसे) (२१) श्रीनमिनाथ तीर्थकर-आप प्राणान्त देवलोकसे आसोज शुदी १.५ को मिथलानगरी विजयसेनराजा-विप्राराणिकी कुक्षीमे अवतीर्ण हुवे क्रमशः श्रावण वद ८ को जन्म हुवा १५ धनुष्य सुवर्णवर्ण कमलका लंच्छनवाला शरीर-पाणिग्रहन-राजपद भोगव, आसाढ वद ६ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा प्रहन करी-अध्यात्म ध्यानादि करते हुवे को मृगशर शुद ११ को कैवल्यज्ञान हुवा शुभदत्तादि २०००० मुनि अनिलादि ४५००० आर्यिकाए १७०००० श्रावक ३४८००० श्राविकाए हुई–सर्वायुष्य १०००० वर्षका पूर्णकर वैशाख वद १० को
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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