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विष्णुकुमार मुनि.
(४१) . इस भगवान् के शासनान्तर मे अयोध्यानगरी का दशरथ राजा कौशल्या राणि से रामचन्द्र ( पद्म ) नामका बलदेव और माये नमस्कारादि कीया नमुचिने पुच्छा कि सब लोगों कि भेट आ गइ व कोइ रहा भी है ब्राह्मणोने कहा एक जैनाचार्य नहीं आये है. ___ इस पर ममुचिने गुस्से हो कहला भेजा कि जैनाचार्य तुमको यहां पाना चाहिये आचार्य ने कहलाया कि संसारसे विरक्त को एसे कार्यों से प्रयोजन नहीं है इसपर नमूचि क्रोधित हो हुकम दीया हमारा राजसे सातदिनोमें शीघ्र चले जावो नहीं तो कतल करवा दि जावेंगा यह मुन प्राचार्य को बड़ी चिंता हुइ की चक्रवर्ती का राज के खण्ड में है तो इनके बाहार केसे जा सके आचार्य श्री सब साधुनोंको पुच्छा कि तुमारे अन्दर कोई शक्तिशाली है कि ! इस धर्म निंदक को योय सज्जादे इसपर मुनियोने अर्ज करी एसा मुनि विष्णुकुमार है पर वह सुमेरूगिरिपर तप कर रह है प्राचार्यत्रीने कहा कि जावो कोइ मुनि उसको यह समाचार कहो ? एक मुनिने कहा कि वहां जाने कि सक्ति तो मेरे में है पर पीच्छा मानेकी नहीं सूरिजीने कहा तुम जावो विष्णुकुमार को सब हाल कहके यहां ले आवो वह तुमको भी ले प्रावेगा इस माफीक मुनि गुरु पास आया बाद विष्णुमुनि राजसभामें गया नमूचि के सिवाय सबने उठके वन्दन करी बाद धर्मदेशना दी और नमूचि से कहा हे विप्र । क्षणक राजके लिये तुं अनिति क्यों करता है चक्रवर्तीका राज छे खण्डमें है तो वह साधु सात दिनमें कहां जा सके इत्यादि नमूचिने कहा कि तुम राजा का बड़ा भाई हैं वास्ते तुमको तीन कदम जगहा देता हुँ बाकी कोइ मुनि मेरे राज्यमें रहेगा उसे में तत्काल ही मरा ढुंगा । इसपर विष्णु मुनिने सोचा कि यह मधुर वचनोसे माननेवाला नहीं है तब वैक्रयल ब्धि से लक्ष योजनका शरीर बनाके एक पग भरतक्षेत्र दूसरा समुद्र और तीसरा पग नमूचि -बलके सिर पर रखा कि उसको पतालमें घूसा दीया वह मरके नरकमें गया और विष्णुमुनि अपने गुरुके पास जा आलोचना कर क्रमशः कम क्षय कर मोक्ष गया.
इसी कथा को तोडमोड ब्राह्मणोंने लिख मारा है किं विष्णु भगवान् वामनरूप धारण कर यज्ञ करता बलराजा कोछला पर यह नहीं सोचा क्या भगवान् भी छल करते थे पर जिस मतके भगवान् पुत्रीसे गमन और परस्त्रीओंसे लिला करे उसको छल कोनसी गिनती मे ह।