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जैन जातिमहोदय.
नुष्य श्यामवर्ण कच्छप लंच्छन कर शोभित शरीर पाणिग्रहन कीया और राज भोगव के फागण शुद्ध १२ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा धारण करी अध्यात्माध्यान करते हुवे को फागण वद १२ को कैवल्यज्ञान हुवा मल्लादि ३०००० मुनि पुष्पमति आदि ५०००० आर्यिकाए १७२००० श्रावक ३५०००० श्राविकाओ कि सम्प्रदाय हुइ ३०००० वर्ष का सर्वायुष्य भोगव के जेष्ठ वद ९ को सम्मेतसिखर पर निवार्ण हुवा ६००००० वर्ष आपका शासन चलता रहा इति
* आपके शासन महापद्म नामका नौवा चक्रवर्ती हुवा जिसके संबन्ध - हस्तनापुर नगरमें पद्मोत्तर राजाकि ज्वलादेवी राणिके विष्णुकुमार और महापद्म नामके दो पुत्र हुवा इस समय अवंती नगरी के श्री धर्म नामका राजा का नमूची जिस्का दूसरा नाम बल था जातिका वह ब्राह्मण था उस समय मुनिसुव्रत भगवान् के शिष्य सुव्रताचार्य वहां पधारे नमुचिबलने उनके साथ शास्त्रार्थ कर पराजय हुवा तब रात्रिमे तलवार ले आचार्य को मारने को चला आचार्य के अतिशय से वह रस्ता में स्थंभित हो गया शुभे उसकी बहुत निंदा हुई तब वहां से मुक्त हो हस्तनापुरमें जा कर युगराजा महापद्म कि सेवा करने लगा एक समय महापद्म किसि कार्य से संतुष्ट हो " यथेच्छा " वर दे दीया था कालान्तर पश्नोतर राजा और बिष्णुकुमार तो सुव्रताचार्य के पास दीक्षा
करली और महापद्म राजा हो क्रमशः छे खण्डाधिपति चक्रवर्ती राजा हो गया बाद सुव्रताचार्य फीरसे हस्तनापुर आये नमुचि-बलने सोचा कि इस समय इस आचार्य से वैर लेना चाहिये तब महापद्म से अर्ज करी कि वेदो मे कहा माफीक मेरे एक महा यज्ञ करना है वास्ते मुझे पूर्व दीया हुवा वर-वचन मिलना चाहिये राजाने कहा मांगो तत्र नमुचिने यज्ञ हो वहां तक सर्व राज मांगा वचन के बंधा राजाने नमुचि को राज दं माप अन्तेवर घर में चला गया बाद नमुचिने नगर के बहार एक मण्डप तैयार करवायके प्राप राजा वन गया एक जैन साधुओ के सिवा सब लोक भेट ले के नमुचिके पास