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१९-२० वा तीर्थंकर.
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( १९ ) श्रीमल्लिनाथ तीर्थंकर – जयंत नामका वैमान से फागण सुद ४ को मिथिलानगरी - कुम्भराजा - प्रभावती राणि की कुक्षी में अवतीर्ण हुवे क्रमशः मागशर शुदी ११ को जन्म, २५ धनुष्य - निलवर्ण - कलस चिन्हवाला शरीर - कुमारावस्थामें मृगशर शुद ११ को ३०० पुरुष ३०० स्त्रियों के साथ दीक्षा ग्रहन करी मृगशर शुदी ११ को कैवल्यज्ञान हुवा अभिक्षादि ४०००० मुनि, बिंदु मति दि ५५००० आर्यिकाए २८३००० श्रावक ३७०००० श्राविकाए कि सम्प्रदाय हुई ५५००० वर्षका सर्वायुष्य पूर्ण कर फागण शुद १२ को सम्मेदसिखर पर निर्वाण पधारे आपका शासन ५४००००० वर्ष तक अविच्छीन्नपणे प्रचलित रहा ।
(२०) श्रीमुनिसुव्रत तीर्थंकर - अप्राजीत वैमानसे श्राव
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ण शुद १५ को राजग्रह नगर सुमित्रराजा पद्मावती राणी कि कुक्षीमें अवतार लfया क्रमशः जेष्ट वद ८ को जन्म हुवा २० ध
पर रखदीया इधर एक मेघ नामका विद्याधर निमित्तियाके कहनेसे अपनि पद्मश्री नापुत्र भूम को परणादीथी वाद माताको कहनेसे सुभूम पीछली सब बात और परशुरामका अत्याचार जान वहांसे हस्तनापुरमे गया दाढी कि खीर देखतेही बन गई उसको भूम खा गया उसी थालका चक्र बना परशूरामका सिर काट प्राप एक नगर का ही नहीं पर सार्वभौम्य राजकर चक्रवर्ती हुवा.
पुराणवालोने लिखा है कि परशूराम परशू ले क्षत्रियोंको काटता हुवा रामचंब्रज के पास आया तब रामचन्द्रजीने परशूरामकी पग चंपी कर उसका तेज हर लिया तब परशू निचा पड गया फीर उठा नहीं सके । कैसी अज्ञानता है कि एक अवतार बूसरा अवतारको मारनेको आवे फीर भी तुरा यह कि एक अवतार दुसरा का तेजको भी हरण कर लिया क्या बात हैं सत्य तो यह है कि वह रामचंद्रजी नहीं पर सुभूम 'चक्रवर्ती ही था. इति अष्टमा चक्री