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जैन जाति महोदय.
सुभूम चक्रवर्ती के बाद इसी अन्तर में दतनामा सातवा वासुदेव नंदनामा बलदेव प्रल्हाद नामका प्रति वासुदेव हुवा -
है चोडीने कहा कि तुमको मालुम नहीं हैं कि शास्त्र कहता है " 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति " यह सुनके तापस को पुत्रकि पीपासा लगी. तब एक नेमिक नगरी मे गया वहाका जयशत्रु राजाने आदर दीया बाबाजीने राजाके १०० पुत्रियोंमें एक पुत्रि की याचना करी. राजाने कहा जो आपको चाहे उसकों आप ले लिजिये । तापसने सबसे आमन्त्रण कीया पर एसी भाग्यहिन कोन के उस तापस को वर करे. एक छोटी लडकी रेतमे खेलतीथी उसे ललचा के तापस अपने आश्रम मे माया युवा होने पर उसके साथ लग्न कीया. रेणुका ऋतु धर्म हुइ तब तापस चरु ( पुत्रविद्या ) साधन करने लगा रेणुकाने कहा कि मेरी बेहन हस्तनापुरका अनंतवीर्य को परणी हैं उसके लिये भी एक चरू साधन करना. तापसने एक ब्राह्मण दूसरा क्षत्रिय होने कि विद्या साधन करी रेणुकाने क्षत्रिवाला और बेहन को ब्राह्मणवाला चरू खीलानेसे दोनों के पुत्र हुवा रेणुका के पुत्रका नाम राम, बेहन के पुत्रका नाम कृत वीर्य - रामने एक वैमार विद्याधर कि सेवा करी जिससे संतुष्ट हो उसने परशुविद्या प्रदान करी. तबसे रामका नाम परशूराम हुवा । एकदा अनंतवीर्य राजा अपनी साली रेणुका को अपने वहां लाय परिचय विशेष होनेसे रेणुकासे भोगविलास करते हुवे को एक पुत्रभी हो गया वाद यमदग्नि स्त्रि मोहमें अन्ध हो सपुत्र रेणुका को अपने आश्रममे लाये परन्तु परशूराम उसका व्यभिचार जान माता और भाईका सिर काट दीया बाद अनंतवीर्य यह बात सुनी तत्काल फौज ले माया तापसका आश्रम भस्म कर दीया यह परशूराम को ज्ञात हुवा तब परशू लेके हस्तनापुर जाके राजाको मारडाला. कृतवीर्य क्रोधित हो यमदग्निको मारा तब परशुराम कृतवीर्य को मारडाला व कृतवीर्य कि तारा राणी सगर्भा वहांसे भाग तापस के सर गई परशूराम हस्तनापुरका राजा बनगया - ताराराणी भूमिग्रहमें छीपके रही थी वहां चौदह स्वप्नसूचक पुत्र जन्मा जीसका नाम सुभूम रखा गया. परशूरामने सातवार निःक्षत्रियपृथ्वी कर दी उन क्षत्रियोंकि दाढीसे एक स्थल भरा. परशूराम कीसी निमिनिये को पुच्छा कि मेरा मरणा कीसके हाथसे होगा तब उसने कहा कि जिस्के देखते ही दाढीका थाल खीर बनजावेगा उस खीरकों खानेवाला निश्चय तुमको मारेगा. परशुरामने एक दानशाला खोली और दाढीवाला थाल वहां सिंहांसन