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सुभूम चक्रवर्त्ति.
( ३७ ) क्रान्ति - नंदावृत लंच्छन भूषीत शरीर पाणिग्रहन - राजपद व चक्रवर्ती राजा हो फीर मृगशर शुद ११ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा धारण करी. कार्तीक शुद्ध १२ को कैवल्यज्ञान. कुंभादि ५०००० मुनि रक्षितादि ६०००० आर्यिकाए ९८४००० श्रावक ३७२००० श्राविकाए हुई ८४००० बर्षका सर्वायुष्य पूर्णकर सम्मेद सिखरपर मृगशर शुद १० को निर्वाण हुवा एक हजार क्रोड वर्ष तक शासन चलता रहा । ( आप छै पद्वीधारक थे )
आपके शासनान्तरमें पुरिषपुंडरिक नामका छठावासुदेव आनंदबलदेव बली नामका प्रति वासुदेव हुवा ( देखो यंत्रसे )
आपके शासनान्तरमें आठवा सुभूम नामक चक्रवर्ती राजा हुवा इसकि कथा जैन शास्त्रकारोने बहुत विस्तारसे लिखी है
* वसंत, र नगर में एक नाबालक •डका था वह किसी सथवाहा के साथ देशान्तर जाता हुवा रस्तेमे एक तापस के आश्रम मे टेर गया वह बडा भारी तप करा वास्ते लोकोने यमदग्नि नाम रखा दीया उस समय एक विश्वानर नामका जैनदेव दूसरा धनंतरी तापसइन दोनो के पुसमे धर्म्म संबंधि बिवाद हुवा अपना २ धर्म को अच्छा बताते हुवे परीक्षा करने को मृत्यु लोकमें आये उस समय मिथला नगरीका पद्मरथ राजा भाव यति बन चम्पानगरीमे विराजमान जैनमुनि के पास दीक्षा लेनेको जा रहा था दोनो देवोंने उसे अनुकुल प्रतिकुल बहुत उपसर्ग किया पर वहं तनकभी नहीं चला बाद दोनों देवता यमदग्नितापस जो ध्यान लगा के तपस्या करता था उसकि दाढी मे चीडा चीडी का रूप बना कर बेठके चीडा कहने लगा कि में हेमाचलपर जाउंगा - वीडी वोली तुम वहां जाके कीसी इसरी चीडीसे यारि कर लोगे ? चीडाने कहा नहीं करुगा अगर में एसा करूं तो मुझे गौ हत्याका पाप लगे। चीडीने कहा एसे में नही मानु एसे कहो कि में कीसी दूसरी चीडीसे यारि करु तो इस यमदग्नि का मुझें पाप लगे यह सुनते ही तापस को खुब गुस्सा आया और पुच्छा कि क्या मेरा पाप गौहत्यसे भी ज्यादा