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________________ शान्तिनाथ तीर्थकर (३५) माघ शु० ३ को हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ली. तपादि कर पौष शु० ० १५ को कैवल्य ज्ञान हुवा अरिष्टादि ६४००० मुनि आर्यशिवादि ६२४०० आर्यिकाए २०४००० श्रावक ४१३००० श्राविकाओ हुइ दश लक्ष वर्ष सर्वायुष्य पूर्ण कर सम्मेदसिखरपर जेष्ट शु० ५ को निर्वाण हुवे तीन सागरोपम का शासन जिसमें कुच्छ काल विच्छेद भी हुवा. आपका शासन में पुरुषसिंह नाम पंचवा वासुदेव सुदर्शन बलदेव निष्कुंभ नाम का प्रति वासुदेव ( देखो यंत्र से ) यहां तक पांचो वासुदेवादि सब राजा अरिहंतोपासक जैनधर्मि हुवे है. आपका शासनान्तर में मघवा और सनत्कुमार नामका चक्रवर्ती जैन राजा हुवे जिस्का अधिकार भरत कि माफकि शेष यंत्र मे देखो- नौवा भगवान से वहां तक विचविचमे शासन विच्छेद होने से पाखंडि ब्राह्मणभासों का इतना जौर शौर बढ गया था और वेदों को नष्ट भ्रष्ट कर ऋग् युजुर् साम और अर्थवण नाम के नये वेद बना के अनेक स्वार्थपोषक श्रुतियो बनादीथी ( १६ ) श्रीशान्तिनाथ तीर्थकर - सर्वार्थसिद्ध वैमान से भाद्रपद वद ७ को हस्तिनापुर का विश्वसेन राजा अचिरा राणि की रत्नकुक्षमें अवतार लिया क्रमशः जेष्ट वद १३ को जन्म हुवा ४० धनुष्य सुवर्णक्रान्ति मृगचिन्हवाला शरीर- पाणिग्रहन - राजपद और चक्रवर्तीपना भोगव के जेष्ट बंद १४ को एक हजार पुरुषो के
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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