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जैन जाति महोदय.
श्राविकाए की सम्प्रदाय हुई साठ लक्ष वर्ष का सर्वायुष्य पूर्ण कर आषाढ बंद ७ को सम्मेदसिखर पर आप का निर्वाण हुवा, नौ सागरोपम शासनमें कुच्छ समयतक धर्म विच्छेद भी हुवा । आप का शासन में तीसरा स्वयंभू वासुदेव, भद्रबलदेव, मेरक प्रतिवासुदेव हुवा. ( देखो अन्त का यंत्र.
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( १४ ) श्री अनंतनाथ तीर्थकर - प्राणत देवलोकसे श्रावण वद ७ को अयोध्यानगरी सिंहसेन राजा - सुयशा राणी की कुक्षीमें अवतार लीया क्रमशः वैशाख वद १३ को जन्म हुवा ५० धनुष्य पितवर्ण, सिंचारणा का चिन्ह पाणिग्रहन - राज भोगव के वैशाख वद १४ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा तपश्चर्यादि कर वैशाख वद १४ को कैवल्यज्ञान प्राप्त किया यशस्वी आदि ६६००० मुनि पद्मादि ८२००० आर्यिकाए २०६००० श्रावक ४१४००० श्राविकाओं कि सम्प्रदाई तीस लक्ष वर्षका सर्वायुष्य पूर्ण कर चैत्र शुद ५ को सम्मेदसिखर पर निर्वाण हुवा चार सागरोपम शासन पर कुच्छकाल बिचमें विच्छेद भी हो गया था.
आपका शासन में पुरुषोतम नामका चोथा वासुदेव सुप्रभबलदेव मधु प्रतिवासुदेव हुवा ( देखो आगे यंत्रसे )
( ११ ) श्रीधर्मनाथ तीर्थंकर - विजय वैमान से वैशाख शुदी ७ को रत्नपुरीनगरी - भानूराजा - सुत्रताराणि कि रत्नकुक्षी में अवतीर्ण हुवे. क्रमशः माघ शुदी ३ को जन्म ४५ धनुष्य पीतवर्ण बज्रलंच्छनवाला सुन्दर शरीर - पाणिग्रहन, - राज भोगवके