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१२-१३ वा तीर्थंकर.
( ३३ ) करण किया हो पर जिस को ईश्वर परमेश्वर सर्वज्ञ ब्रह्मा कहते है उस पर एसा कलंक पुराणोंवालोंने क्या समज के लगाया होगा ?
( १२ ) श्री वासुपूज्य तीर्थकर — प्रारणान्त देवलोक से जेष्ट शुद ९ को चम्पापुरी नगर वसुपूज्य राजा - जया राणी के कुक्षी में अवतीर्ण हुवे । क्रमशः फागण वद १४ को जन्म हुवा ७० धनुष्य रक्तवर्णं पाडा का चिन्हवाला शरीर, पाणिग्रहन करने के बाद फागण शुद १५ को छसौ पुरुषों के साथ दीक्षा ली तप करते हुवे को माघ शुद २ को कैवल्यज्ञान हुवा सुभूमादि ७२००० मुनि धारण आदि १००००० साध्वियों २१५००० श्रावक ४३६००० श्राविकाए, बहुत्तर लक्ष वर्ष का सर्वायुष्य पूर्ण कर आषाढ शुद्ध १४ को चम्पानगरी में आपका निर्वाण हुवा तीस सागरोपम शासन जिसमें कुच्छ काल धर्म विच्छेद भी हुवा | आप के शासन में द्विपृष्ट नामका वासुदेव त्रिजयबलदेव और तारक नामका प्रतिवासुदेव हुवा. ( देखो अन्त का यंत्र . )
(१३) श्री विमलनाथ तीर्थंकर - सहस्रा देवलोकसे वैशाख शुद २ को कंपिलपुर कृतवर्मा राजा की श्यामा राणी की कुक्षीमें अवतीर्ण हुवे क्रमशः माघ शुद ३ को जन्म हुवा ६० धनुष्य सुवर्णसदृश बराह का चिन्हवाला उत्तम शरीर था पाणिग्रहन, राज भोगव के माघ शुद ४ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा तपादिसे पौष शुद्ध ६ को कैवल्यज्ञान हुवा मन्दिरादि ६८००० मुनि, धरादि १००८०० आर्यिकाए २०८००० श्रावक ४२४०००
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