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जैन जाति महोदय. सम्मेदसिखर पर निर्वाण हुवे । एक सागरोपम के अन्तरमें. भाप का भी शासन विछेद हुवा था. इनोके शासनान्तरमें एक युगल मनुष्यसे हरिवंस कुलाकि उत्पत्ती देखो दश आश्चर्य ।
(११) श्री श्रेयांसनाथ तीर्थकर-अच्युत देवलोकसे जेष्ट वद ६ को सिंहपुरीनगरी के विष्णुराजा-विष्णाराणी की कुक्षीमें अवतार लीया । क्रमशः फागण वद १२ को जन्म, ८० धनुष्य सुवर्णसदृश, गैंडा का चिन्हवाला सुन्दर शरीर, पाणिग्रहन कर राजपद भोगव के फागण वद १३ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ले तप कर माघ वद १३ को कैवल्यज्ञान हुवा। कच्छपादि ८४००० साधु धारणि आदि १०३००० साधियों २७९००० श्रावक ४४८००० श्राविकाए की सम्प्रदाय हुई। ८४००० पूर्व वर्ष का सर्वायुष्य भोगव के श्रावण वद ३ को सम्मेदसिखर पर निर्वाण हुवे । चौपन सागरोपमका अन्तर. (आप का शासन भी विच्छेद हुवा था.).
आप के शासनमें त्रिपृष्ट नामका पहला वासुदेव, अचल बलदेव,और अश्वग्रीव प्रतिवासुदेव हुवे थे जिस का संबन्ध-पोतनपुर नगर का राजा जयशत्रु था उनकी मृगावती नाम की पुत्री अत्यन्त सरूपवान होनेसे राजाने अपनी पुत्री के माथ ग्रहवास कर लिया जिससे दुनियोंने जयशत्रु का नाम प्रजापति रख दीया उस मगावती के त्रिपृष्ट नाम का वासुदेव हुवा और उसी राजा की भद्रागणीसे अचल बलदेव हुवा । हिन्दू शास्त्रोंमें जो ब्रह्माने अपनी पुत्रीसे गमन करनेका लिखा है स्यात् उसी कथा का अनु