________________
संभवनाथ तीर्थकर.
(२७)
(३) श्री संभवनाथ तीर्थकर-नवप्रैवेयकसे फागण शुद ( को चव के सावत्थी नगरीका जितारीराजा कि सेनाराणि की कुक्षी में अवतीर्ण हुवे क्रमशः माहा शुद १४ को जन्म हुवा, ४०० धनुष्य का सुवर्ण कान्तिवाला शरीर अश्वचिह्न से भूषितथा पाणिग्रहन हुवा और राजपद भोगव के मृगशर शुद १५ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ग्रहन करी. बाद तपादि करते हुवे कार्तिक वद ५ को कैवल्यज्ञान प्राप्त किया चारू आदि २००००० मुनि व श्यामादि ३३६००० आर्यिकाएं, २९३००० श्रावक, ६३६००० श्राविका कि सम्प्रदाय हुई अन्त में चैत्र शुद ५ को सम्मेतशिखरपर ६० लक्षपूर्व का सर्व आयुष्य पूर्ण कर मोक्ष पधारे आप का शासन दशलक्ष क्रोड सागरोपम तक प्रवृत्तमान रहा।
(४) श्री अभिनंदन तीर्थंकर-जयंत वैमान से वैशाख शुद ४ को अयोध्या नगरी के संबरराजा-सिद्धार्थाराणि कि कुक्षी में अवतीर्ण हुवे. क्रमशः माहा शुद २ को भगवान का जन्म हुवा ३५० धनुष्य का पितवर्ण बंदर के चिह्नवाला शरीरथा पाणिग्रहनराज भोगव के महा शुद १२ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ग्रहन. करी । पोष वद १४ को कैवल्यज्ञान प्राप्त हुवा. बज्रनाभादि ३००००० मुनि, अजितादि ६३०००० आर्यिकएं, २८८००० श्रावक और ५२७००० श्राविकाओं कि सम्प्रदाय हुई. सर्व पचास लक्ष पूर्वायुष्य पूर्ण कर वैशाख शुद ८ को सम्मेतशिखरपर मोक्ष पधारे. आप का शासन नौलक्ष क्रोड सागरोपम तक प्रवृत्तमान रहा।