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जैन जाति महोदय. (५) श्री सुमतिनाथ तीर्थंकर-जयंत वैमान से श्रावण शुद २ को अयोध्या नगरी के मेघरथराजाकी मंगलाराणिकी कुक्षी में अवतीर्ण हुवे. क्रमशः वैशाख शुद ( को जन्म हुवा. ३०० धनुष्य सोवनवर्ण शरीर कौंचपक्षी का चिह्न-पाणिग्रहन-राजपद भोगव के वैशाख शुद ९ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षाचैत्र वद ११ को कैवल्यज्ञानोत्पन्न हुवा. चरमादि ३२०००० मुनि, काश्यपा आदि ५३०००० साध्वीयों, २८१००० श्रावक, ५१६००० श्राविकाओ की सम्प्रदाय हुई. चालीशलक्ष पूर्व का सर्वायुष्य पूर्ण कर चैत्र शुद ६ को सम्मेतशिखरपर मोक्ष सिधाये. ९० हजार क्रोड सागरोपम आप का शासन प्रवर्त्तमान रहा।
( ६ ) श्री पद्मप्रभु तीर्थंकर--नवौवेयक वैमान से माघ वद ६ को कौसंबी नगरी का श्रीधरराजा-सुषमाराणि कि कुक्षी में अवतार लिया. कार्तिक वद १२ को जन्म, २५० धनुष्य रक्तवर्ण पद्मकमल का चिह्नवाला सुन्दर शरीर, पाणिग्रहन-राज भोगव के कार्तिक वद १३ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा, वैशाख शुद १५ को कैवल्यज्ञान, प्रद्योतनादि ३३०००० मुनि, रति आदि ४२०००० साध्वियों, २७६००० श्रावक, ५०५००० श्राविकाओं कि सम्प्रदाय हुई. सर्व तीसलक्ष पूर्वायुष्य पूर्ण कर मृगशर वद ११ को सम्मेतशिखरपर मोक्ष पधारे. आप का शासन ९ हजार क्रोड सागरोपम तक वर्त्तता रहा।
(७) श्री सुपार्श्वनाथ तीर्थंकर-मध्य गवैग वैमान से भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को बनारसी नगरी प्रतिष्टितराजा-पृथ्वीराणि