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अजितनाथ तीर्थकर.
(२५)
भरतराजाके आठ पाट तक तो सर्व राजा बराबर साके भुवनमे केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गये और भी भरतके पाट असंख्य राजा मोक्ष गये अर्थात् भगवान ऋषभदेवका चलाया हुवा धर्मशासन पचास लक्ष क्रोड सागरोपम तक चलता रहा जिस्मे असंख्यात जीवोंने अपना आत्मकल्याण कीयाथा इति प्रथम तीर्थकर .
( २ ) श्री अजितनाथ तीर्थकर - विजय वैमानसे तीन ज्ञान संयुक्त वैशाख शुद १३ को अयोध्या नगरीके जयशत्रु राजाकी विजयाराणी कि रत्नकुक्षीमें अवतीर्ण हुवे । माता चौदह स्वप्ने देखे जिसका शुभ फल राजा व स्वप्नपाठकों ने कहा माताको अच्छे अच्छे दोहले उत्पन्न हुवे उन सबको राजाने सहर्ष पूर्ण किये बाद माघ शुद ८ को भगवान्का जन्म हुवा छप्पन्न दिग्कुमारि देवियोंने सुतिका कर्म किया और चोसठ इन्द्रमय देवी देवताओंके भगवान्को सुमेरु गिरिपर लेजा के जन्माभिषेक स्नात्रमहोत्सव कीया तदनन्तर राजाने भी बडा भारी आनंद मनाया युवकवयमें उच्च कुलिन राजकन्याओं के साथ भगवान्का पाणिग्रहण करवाया भगवान्का शरीर सुवर्णं कान्तिवाला ४५० धनुष्य प्रमाण गजलंच्छन कर सुशोभित था जब सांसारिक यानि पौद्गलिक सुखोसे विरक्त हुवे उस समय लोकान्तिक देवोने भगवान्से अर्ज करी कि हे प्रभो ! समय आ पहुंचा है आप दीक्षा धारण कर भगवान ऋषभदेवके चेलाये हुवे धर्मका उद्धार . करो तब माघ वद ९ को एक हजार पुरुषके साथ भगवान् दीक्षा धारण करी उग्र तपश्चर्या करते हुवे पौष शुद्ध ११ को भगवान्