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जैन जाति महोदय. . इसी भवमें मोक्ष हो जावेगा क्या आश्चर्य है इसपर भरतने चौरासी बजारोके अन्दर सुन्दर सुन्दर नाटक मंडा दीये और आश्चर्य करनेवाला के हाथमें एक तैलसे पूर्ण भरा हुआ कटोरा दिया और चार मनुष्य नंगी तलवारवालेको साथ दीया कि इस कटोरासे एक बुंद भी गिर जावे तो इसका शिर काट लेना. ('यह धमकीथी) बस ! जीवका भयसे उस मनुष्यने अपना चित्त उसी कटोरेमें रखा न तो उसको मालुम हुवा की यह नाटक हो रहा है न कोई दूसरी वातपर ध्यान दीया. सब जगह फीरके वापिस आनेपर भरतने पूछा कि बजारोमें क्या नाटक हो रहा है ? उसने कहा भगवान् मेरा जीव तो इस कटोरामे था मेने तो दूसरा कुच्छ भी ध्यान नहीं रखा भरतने कहा कि इसी माफीक मेरे आरंभ परिग्रह बहुत है पर दर असल उस्मे मेरा ध्यान नहीं है मेरा ध्यान है भगवान के फरमाया हुवा तत्त्वज्ञानमें यह दृष्टान्त हरेक मनुष्यके लिये बड़ा फायदामंद है इति ।
भरतकि मोक्ष होनेके बाद भरतके पाट आदित्ययश राजा हुवा और बाहुबलके पाट चंद्रयशराजा हुवा इन दोनो राजाश्रोकी संतानसे सूर्यवंश और चंद्रवंश चला है और कुरु राजाकी संतानसे कुरुवंश चला है जिस्मे कैरव पांडव हुवे थे।
. भरतके पास कांगणी रत्न था जीससे ब्राह्मणोके तीन रेखा लगाके चिन्ह कर देता था पर आदित्ययशः के पास कांगणी न होनेसे वह सुवर्ण कि तीन लड दे दीया करता था बाद सोनासे रूपा हुवा रूपासे शुद्ध पंचवर्णका रेशम रहा बाद कपासके सुतकी वह माज पर्यन्त चली आती है।