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जैन ब्राह्मण,
(२१) वार वार माहन माहन शब्दोच्चारन करते थे इसे लोक उनकों ब्राह्मण अर्थात् जैनसिद्धान्तोमें ब्राह्मणोको माहन शब्दसे ही पुकारा है अनुयोगद्वारसूत्रमे ब्राह्मणोका नाम " वुढसावया" वृद्धश्रावक लिखा है।
जब ब्राह्मणो कि संख्या बढ गइ तब भरतने सोचा कि वह सिधा भोजन करते हुवे प्रमादि पुरुषार्थहीन न बन जावे वास्ते उनके स्वाध्याय के लिये भगवान आदीश्वर के उपदेशानुसार चार आर्यवेदों कि रचना करी उनके नाम ( १ ) संसारदर्शन वेद (२) संस्थापन परामर्शन वेद (३) तत्त्वबोध वेद (४) विद्याप्रबोध वेद इन चारों वेदोंका सदैव पठन पाठन ब्राह्मणलोक किया करते थे और छे छे माससे उन की परिक्षा भी हुवा करती थी। आगे नौवां सुविधि नाथ भगवान् के शासनमे हम वतलावेंगे किं ब्राह्मणोने उन आर्य वेदोमे कैसा परिवर्तन कर स्वार्थवृत्ति और हिंसामय वेद बना दीया।
. भगवान् ऋषभदेवका सुवर्णकान्तिवाला ५०० धनुष्य वृषभका चिन्हवाला शरीर व ८४ लक्ष पूर्वका आयुष्य था जिस्मे ८३ लक्ष पूर्व संसारमें १००० वर्ष छद्मस्थपने औरएक हजार वर्ष कम एकलक्ष पूर्व सर्वज्ञपणे भूमिपर विहार कर असंख्य भव्यात्माओका कल्याण कीया अर्थात् जैनधर्म अखिल भारत व्याप्त बना दीया. था. आप आदि राजा, आदि मुनि, आदि तीर्थकर, आदि ब्रह्मा, आदि ईश्वर हुवे पुंडरिकादि ८४ गणधर, ८४००० मुनि, तीनलक्ष आर्यिकाएं एवं श्रावक और श्राविकाओ की बहुत संख्या थी जिस्मे