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जैन जाति महोदय.
एक वर्ष के बाद भगवान् हस्तनापुरनगरमें पधारे वहां बाहुवलीका पौत्र श्रेयांस कुमारके हाथसे वैशाख शुद ३ को इतुरसका पारण कीया देवताओंने रत्नादि पंच पदार्थ कि वर्षा करी तबसे वह मनुष्य मुनियोंकों दान देनेकी रीति जानने लगें. यह हाल सुनके ४००० जंगलवासि मुनि फक्त कच्छ महाकच्छ वर्ज के क्रमशः सब भगवान् के पास आके अपने संयम तपसे आत्मकल्याण करने लग गये।
भगवान् छद्मस्थपने बाहुबली कि तक्षशीला के बाहर पधारे बाहुबलीको खबर होनेपर विचार किया कि प्रभातको में वडे आडम्बरसे भगवान्को वन्दन करनेको जाउंगा पर भगवान् सुबह अन्यत्र विहार कर गये उस स्थान बाहुबलीने भगवान् के चरण पादुकाओं की स्थापना करी वह तीर्थ राजा विक्रम के समय तक मोजुद था बाद म्लेच्छोंने नष्ट कर दीया.
क्रमशः भगवान् १००० वर्ष छद्मस्थ रहै अनेक प्रकारके तपश्चर्यादि करते हुवे पूर्वोपार्जित कोका क्षय कर फागण वद ११ को पुरिमताल उद्यानमें दिव्य कैवल्यज्ञान कैवल्यदर्शन प्राप्त कर लीया आप सर्वज्ञ हो सकल लोकालोक के भावोंको हस्तामलककी माफीक देखने लग गये. भगवान्को कैवल्यज्ञान हुवा उस समय सर्व इन्द्रमय देवीदेवताओं के कैवल्य महोत्सव करनेको आये महोत्सवकर समवसरण की रचना करी यानि एक योजन भूमिमें रत्न, सुवर्ण, चांदी के तीन गढ बनाये उपर के मध्यभागमें स्फटिक रत्नमय सिंहासन बनाया. पूर्व दिशामें भगवान् विराजमान हुवे शेष तीन दिशा