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दीक्षा व वर्षिदान.
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समय आ पहुँचा है अर्थात् कुच्छ न्यून अठारा क्रोडाक्रोड सागरो पमसे मोक्षमार्ग बन्ध हो रहा है उसको आप फीरसे चालु करावे ।
भगवान् दीक्षाका अवसर जान एक वर्ष तक ( वर्षिदान ) अति उदार भावनासे दान दीया, भरतको विनीताका राज बाहुब - लीको तक्षशीलाका राज और संग वंग कुरु पुंडू चेदि सुदन मागध अंध्र कलिंकभद्र पंचाल दशार्ण कौशल्यादि पुत्रोंको प्रत्येक देशका राज देदीया. पुत्रोंका नाम था वह ही नाम देशका पड गया, भगवान् कि दीक्षाके समय चौसठ इन्द्र सपरिवार आके बड़ा भारी दीक्षा महोत्सव कीया भगवान् ४००० पुरुषोंके साथ चैत वद ८ के दिन सिद्धोंको नमस्कारपूर्वक स्वयं दीक्षा धारण कर ली ।
पूर्वजन्ममें भगवान्ने अन्तराय कैर्मोपार्जन कीया था वास्ते भगवान् भिक्षाके लिये पर्यटन करने पर भी एक वर्ष तक भिक्षा न मी कारण भगवान के पहला कोई इस रीतीसे भिक्षा लेनेवाला था ही नहीं और उस समयके मनुष्य इस बातको जानते भी नहीं थे कि भिक्षा क्या चीज होती है ? हाँ हस्ति अश्व रत्न मारणक मौती और सालंकृत सुन्दर बालाओंकी भेटें वह मनुष्य करते थे पर भगवान्को इनसे कोइ भी प्रयोजन नहीं था। उस एक वर्षके अंदर जो ४००० शिष्य थे वह क्षुधा पिडित हो जंगलमें जाके फलफूल कन्द मूलादिका भोजन कर वहांही रहने लगे. कारण उच्च कुलिन मनुष्य संसार त्यागन कर फीर उसको स्वीकार नहीं करते है वह सब जंगलो में रह कर भगवान् ऋषभदेवका ध्यान करते थे ।
१ कीसी काल में ५०० बलदोंके मुंहपर छीकीयों बन्धा के अन्तराय कर्म
बान्धा था ।