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________________ पुरुषों कि ७२ कला. (९) नाका क्षत्रियवंश स्थापन किया जबसे कुल व वंशोकि स्थापना हुई शेष कुल व वंश इनोके अन्दरसे कारण पा पाके प्रगट हुवे है । भगवान्ने युगल मनुष्योंका प्रतिपालन करनेमें व नीतिधर्मका प्रचार करनेमें कितना ही काल निर्गमन कीया उसके दरम्यान भगवान्के भरत बाहुबलादि १०० पुत्र और ब्राह्मी सुन्दरी दो पुत्रियों हुइ थी। भरत बाहुबलादिको पुरुषोंकि ७२ केला और ब्राह्मी सुन्दरीको स्त्रियोंकी ६४ केला व अठारा प्रकारकी लीपी बतलाई ... १ पुरुषोंकी ७२ कला, लिखनेकीकला, पढनेकीकला, गणितकला, गीतकला, मृत्यकला, तालबजाना, पटेहबजाना. मृदंगबजाना, वीणाबजाना, वंशपरीक्षा, भेरीपरीक्षा, गजशिक्षा, तुरंगशिक्षा, धातुर्वाद, दृष्टिवाद, मंत्रवाद, बलिपलितविनाश, रत्नपरीक्षा, नारीपरीक्षा, नरपरीक्षा, छंदबंधन, तर्कजल्पन, नीतिविचार, तत्वविचार, कविशक्ति, जोतिषशास्त्रकाज्ञान, वैद्यक, षड्भाषा, योगाभ्यास, रसायणविधि, अंजनविधि, अढारहप्रकारकी लिपि, स्वप्नलक्षण, इंद्रजालदर्शन, खेतीकरनी, बाणिज्यकरना, राजाकी सेवा, शकुनविचार, वायुस्तंभन, अग्निस्तभन, मेघवृष्टि, विलेपनविधि, मदनविधि, ऊर्ध्वगमन, घटबंधन, घटभ्रमन, पत्रच्छेदन, मर्मभेदन, फलाकर्षण, जलाकर्षण, लोकांचार, लोकरंजन, प्रफल वृक्षोंको सफल करना, खाबंधन, छुरीबंधन, मुद्राविधि, लोहज्ञान, दांतसमारणे, काललक्षण, चित्रकरण, बाहुयुद्ध, मुष्टियुद्ध, दंडयुद्ध, दृष्टियुद्ध, खड्गयुद, वागयुद्ध, गारुडविद्या, सर्पदमन, भूतमईन, योगसोद्रव्यानुयोग, अक्षरानुयोग, म्याकरण, औषधानुयोग, वर्षज्ञान ।। २ अब स्त्रीयोकी चौसठ कला-नृत्यकला, औचित्यकला, चित्रकला. वादित्रकला, मंत्र, तंत्र, ज्ञान, विज्ञान, दंभ, जलन्तंभ, गीतज्ञान, तालज्ञान, मेघवृष्टि, फलवृष्टि, भारामारोपण, कारगोपन, धर्मविचार, शकुन विचार, क्रियाकल्पन , संस्कृतजल्पन, प्रसादनीति, धर्मनीति, वर्णिकावृधि, स्वर्णसिद्धि, तैलसुरभीकरण, लीलासंचरण, गजतुरंगपरीक्षा, स्त्रीपुरुषके लक्षण, कामक्रिया, अष्टादश लिपिपरिच्छेद, तत्कालबुद्धि,
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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