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जैन जाति महोदय.
लडकीको नाभीराजाके पास पहुँचा दी । इन दोनो ( सुमंगला और सुनंदा ) के साथ भगवान् का पाणिग्रहण हुआ. यह पाणिग्रहण पहला पहल ही हुवा था जिसके सब व्यवहार विधि विधान पुरुषोंका कर्त्तव्य इन्द्रने और औरतोंका कार्य्य इन्द्राणिने कीया था जब से युगल धर्म्मबन्ध हो सब युगलमनुष्य इस रीतीसे पाणिग्रहण करने लगें ।
इधर कल्पवृक्ष प्रायः सर्व नष्ट हो जानेसे युगल मनुष्यों मे अधिकाधिक क्लेश बढने लगा नाभीकुलकर हकार मकार धीक्कार दंड देनेपर भी क्षुधातुर युगल मर्यादाका वारवार भंग करने लगें युगलमनुष्यों ने नाभीराजासे एक राजा बनानेकी याचना करी उत्तर में यह कहा कि " जाओ तुमारे राजा ऋषभ होगा " इस अवसर में इन्द्र भगवान्का राजअभिषेक करनेका सब रीतिरीवाज युगलमनुष्यों को बतलाया और स्वच्छ जल लानेका आदेश दीया तब युगल पाणिलानेको गया बाद इन्द्रने राजसभा राजसिंहासन राजाके योग्य वस्त्राभूणों से भगवान्को अलंकृत कर सिंहासनपर विराजमान कर दीये । युगलमनुष्य जलपात्र लाये भगवान्को सालंकृत देख पैरोंपर जलाभिषेक कर दीये तब इन्द्रने युगलों को विनीत कह कर स्वर्गपुरी सदृश १२ योजन लंबी ६ योजन चौडी विनीता नामकी नगरी वसाई उसके देखादेख अन्य नगर ग्राम वसना प्रारंभ हुवा. भगवान्का इक्ष्वाकुवंश था । जिनको कोटवाल पदपर नियुक्त किया उनका उग्रवंश, जिनको बडा माना उनका भोगबंश, जिनको मंत्रिपदपर मुकरर किया उनका राजन्वंश शेष जन