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________________ भगवान् ऋषभदेव. . यद्यपि जैनशास्त्रकारोंने युगलमनुष्योंका व कुलकरोंका विषय सविस्तर वर्णन कीया है पर मैंने मेरे उद्देशानुसार यहां संक्षिप्तसें ही लिखा है अगर विस्तारसें देखने की अभिलाषा हो उन ज्ञानप्रेमियोंकों श्री जम्बुद्विपप्रज्ञप्तिसूत्र जीवाभिगमसूत्र आवश्यकसूत्र और त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्रादि ग्रन्थोंसें देखना चाहिये । इति भोगभूमि मनुष्योंका संबन्ध ॥ सर्वार्थसिद्ध वैमानमें राजा वज्रजंघका जीव जो देवता था वह तेतीस सागरोपमकी स्थितिको पूर्ण कर इक्ष्वाकु भूमिपर नाभीकुलकरकी मरूदेवा भार्याके पवित्र कुक्षीमें आसाढ वद ४ कों तीन ज्ञान संयुक्त अवतीर्ण हुवे माताने वृषभादि १४ स्वप्ने देखा नाभीकुलकर व इन्द्रने स्वप्नोंका फल कहा-शुभ दोहला पूर्ण करते हुए चैत वद ८ को भगवानका जन्म हुवा ५६ दिग्कुमारिकाओंने सूतिकाकर्म किया और ६४ इन्द्रोंने सुमेरु गिरिपर भगवानका स्नात्रमहोत्सववडे ही समारोहके साथ कीया | वृषभका स्वप्नसूचित भगवानका नाम वृषभ यानि ऋषभदेव रखा । इन्द्र जब भगवानके दर्शनको आया तब हाथमें इतु (सेलडीका सांठा ) लाया था और भगवान्को आमन्त्रण करनेपर प्रभुने ग्रहन कीया वास्ते इन्द्रने आपका इक्ष्वाकुवंश स्थापन कीया । सुमंगला-भगवानके साथ युगलपने जन्म लिया था । . सुनंदा-एक नूतन युगल ताड वृक्ष निचे बेठा था उस ताड का फल लडकाके कोमल स्थानपर पडनेसे लडका मर गया बाद
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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