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________________ जैन जाति महोदय. 'हकार'' मकार' से बढ के ‘धिकार' नीति बनानी पड़ी अर्थात् मर्यादा उल्लंघनेवाले युगलोंको 'धीकार' कहनेंसें वह लज्जितविलजित हो फिर दूसरीवार एसा कार्य नहीं करता था प्रसेनजीतकी चक्षुष्कान्तात्रिसे मरुदेव नामका पुत्र हुवा. वह भी अपने पिताके स्थान कुलकर हो तीनों दंड नीतिसें युगलमनुष्योंको इन्साफ देता रहा मरुदेवकी भार्या श्रीकान्ता कि कुक्षीसे नाभी नामका पुत्र हुवा वह भी अपने पिनाके पदपर कुलकर हुवा इसके समय भी तीनो प्रकारकी दंड नीति प्रचलितथी पर कालका भयंकर प्रभाव युगलमनुष्योंपर इस कदरका हुवा कि वह हकार मकार धीकार एसी तीनों प्रकारकी दंड नीतिको उल्लंघन करनेमें अमर्यादित हो गये थे उस समय कल्पवृक्ष भी बहुत कम हो गये जो कुछ रहे थे वह भी फल देनेमें इतनी संकीर्णता करते थे कि युगलमनुष्योंमें भोगोपभोग के लिये प्रचुर कषायका प्रादुर्भाव होने लग गये |कुच्छन्यून मकार सं. कुलकर. - भार्या. | पिता. माता. | आयुष्य.| देहमान. | दंडनीति. |पल्योपमके १ विमलवाहन चंद्रयशा दशमेअंश हकार चक्षुष्मान , चंद्रकान्ता, विमलबाहन | चंद्रयशा यशस्वी स्वरूपा । चक्षुष्मान | चंद्रकान्ता अभिचंद्र । प्रतिरूपा यशस्वी स्वरूपा ५ प्रसेनजीत चक्षुक्रान्ता, अभिचंद्र प्रतिरूपा | मरुदेव श्रीकान्ता प्रसेनजीत | चक्षुकान्ता नाभिराजा | मरुदेवा | मरूंदव |श्रीकान्ता धीकार
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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