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(७२) जैन जाति महोदय प्र० प्रकरण. मात्र श्रद्धा ( भक्ती ) उपर तो कोइ ज्ञान उपर अने कोइ वली मात्र चारित्र उपरज भार मूके छे, परन्तु जैन धर्म ए त्रणेनां समन्वय भने सहयोगथीज आत्मा परमात्मा थाय छे एम स्पष्ट जणावे छे.
(३) रिषभदेवजी 'आदिजिन' 'आदिश्वर' भगवान्ना नामे पण भोळखाय छे. भृग्वेदनी सूक्तीमां तेमनो अहेत तरीके उल्लेख थएलो छे. जैनो तेमने प्रथम तीर्थकर माने छे.
(४) बीजा तीर्थंकरो बधा पत्रीयोंज हता.
(५) श्रीयुत् बाबू चंपतरायजी जैन बैरिष्टर एट-लॉ हरदोइ सभापति, श्री भ. दि. जैन महासभाका ३६ वा अधिवेशन लखनउने अपने व्याख्यानमें जैन धर्मको बौद्ध धर्मसे प्राचीन होनेके प्रमाण दिये हैं उससे उध्धृत ।
(१) इन्सायक्लोपेडियामें यूरोपीयन विद्वानोने दिखाया है कि जैन धर्म बौद्ध धर्मसे प्राचीन है और बौद्ध मतने जैन धर्मसे उनकी दो परिभाषाएं अश्राव व संवर लेली है अंतिम निर्णय इन शब्दोंमें दिया है कि:
जैनी लोग इन परिभाषाओं का भाब शब्दार्थमें समझते है और मोक्ष प्राप्तिके मार्गके संबंध इन्हे व्यवहृत करते हैं (पाश्रवों के संवर और निर्जरासे मुक्ति प्राप्त होती है ) अब यह परिभाषाए उतनी ही प्राचीन है जितना कि जैन धर्म है । कारण कि बौद्धोंने इससे अतीव सार्थक शब्द प्राश्रवको ले लिया है । और धर्मके समान ही उसका व्यवहार कीया है । परन्तु शब्दार्थमें, नहीं कारण की