________________
जैनेतर विद्वानों की सम्मतिए. (७१) (५) जैनोंके सैकडों प्राचीन लेखोंका संग्रह संपादन और मालोचना विदेशी और कुछ स्वदेशी विद्वानोके द्वारा हो चुकी है। उनका अंग्रेजी अनुवाद भी अधिकांशमें प्रकाशित हो गया है।
(६) इन्डियन एन्टीकेरी, इपिप्राफिया इन्डीका सरकारी गैजेटीयरों और प्राकिया लॉजिकल रिपोर्टो तथा अन्य पुस्तकों में जैनोंके कितनेही प्राचीन लेख प्रकाशित हो चुके है । बूलर, कोसेस किस्टे विल्सन, हूलश, केलटर और कीलहान आदि विदेशी पुरातत्वज्ञोंने बहुतसे लेखोंका उद्धार किया है। ...
(७) पेरीस ( फ्रान्स ) के एक फ्रेन्च पंडित गेरिनाटने अकेलेही १२०७ ई० तकके कोई ८५० लेखोंका संग्रह प्रकाशित कीया है तथापि हजारों लेख अभी ऐसे पडे हुए है जो प्रकाशित नहीं हुए.
(८) इन्डीयन रिव्यू के अक्टोबर सन् १९२० के अंकमें मद्रास प्रेसीडेन्सी कॉलेज के फिलोसोफीका प्रोफेसर मि. ए. चक्रवर्ती एम. ए. एल. टी. लिखित " जैन फिलॉसोफी " नामके आर्टिकल का गुजराती अनुवाद महावीर पत्रके पौष शुक्ला १ संवत् २४४८ वीर संवत् के अंकमें छपा है उसमें से कुछ वाक्य उध्धृत ।
( १ ) धर्म अने समाजनी सुधारणामां जैनधर्म बहु अगत्यनो भाग भजवी शके छे. कारण या कार्य माटे ते उत्कृष्ट रीते लायक थे. - (२) प्राचार पालनमां जैन धर्म घणो पागल वधे छे. भने बीजा प्रचलित धर्मोने तो संपूर्णतानुं भान करावे छे, कोई धर्म