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(७) जैनजातिमहोदय प्र० प्रकरण.
(३) हिन्दी भाषाके सर्वश्रेष्ठ लेखक और धुरंधर विद्वान् पंडीत् श्री महावीर प्रसादजी द्विवेदीने प्राचीन जैन लेखसंग्रहकी समालोचना “ सरस्वती” में की है। उसमेंसे कुछ वाक्य ये है:
(१) प्राचीन ढहेके हिन्दू धर्मावलम्बी बडे बडे शास्त्री तक अब भी नहिं जानते कि जैनियों का स्याद्वाद किस चिडियांका नाम है । धन्यवाद है जर्मनी और फ्रान्स, इंग्लांड के कुछ विद्यानुरागी विशषझोकों जिनकी कृपासे इस धर्मके अनुयायियोंके कीर्तिकलापकी खोज
और भारत वर्षके साक्षर जैनों का ध्यान आकृष्ट हा यदि ये विदेशी विद्वान् जैनों के धर्म ग्रंथों आदि की आलोचना न करते । यदि ये उनके कुछ अंन्थोका प्रकाशन न करते और यदि ये जैनोंके प्राचीन लेखोंकी महत्ता न प्रकट करते तो हम लोग शायद आज भी पूर्ववत् ही अज्ञानके अंधकारमें ही डूबे रहते। ..
(२) भारतवर्ष में जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसके अनुयाई साधुनों ( मुनिमों ) और प्राचार्योमेंसे अनेक जनोंने धर्मोपदेशके साथ ही साथ अपना समस्त जीवन प्रन्थरचना और अन्य संग्रहमें खर्च कर दीया है.
(३) बीकानेर, जैसलमेर और पाटन आदि स्थानों में हस्तलिखीत पुस्तकोंके गाडीयों बस्ते अब भी सुरजीत पाये जाते है ।
(४) अकबर इत्यादि मुगल बादशाहोंसे जैन धर्मकी कितनी सहायता पहुंची, इसका भी उल्लेख कईमें हैं।