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________________ जैनेत्तर विद्वानोकि सम्नतिए. (६७) महर्षि उत्पन्न हुए। वे दयावान भद्र परिणामी, पहिले तीर्थकर, हुए जिन्होंने मिथ्यात्व अवस्था को देखकर" सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र रूपी मोक्षशास्त्र का उपदेश दया । बसयह ही जिनदर्शन इस कल्पमें हुआ। इसके पश्चात् अजितनाथसे लेकर महावीर तक तेइस तर्थिकर अपने अपने समयमें अज्ञानी जीवोंका मोह अंधकार नाश करते थे। (१३) साहित्यरत्न डाक्टर रवीन्द्रनाथ टागोर कहते हैं कि महावरिने डीडींग नादसे हिन्दमें ऐसा संदेश फैलाया कि:-धर्म यहमात्र सामाजिक रूढि नहि हैं परन्तु वास्तविक सत्य हैं, मोक्ष यह बाहरी क्रियाकांडसे नहिं मिलता, परन्तु सत्य-धर्म स्वरुपमें आश्रय लेनेसे ही मिलता है । और धर्म और मनुष्यमें कोई स्थायी भेद नहीं रह सकता । कहते आश्चर्य पैदा होता है कि इस शिक्षाने समाजके हृदयमें जड़ करके बैठी हुई भावनारूपी विघ्नोंको त्वरासे भेद दिये और देशको वशीभूत करलिया, इसके पश्चात् बहुत समय तक इन क्षत्रिय उपदेशकोंके प्रभाव बलसे ब्राह्मणों की सत्ता अभिभूत हो गई थी। (१४) टी. पी. कुप्पुस्वामी शास्त्री एम. ए. आसिस्टेन्ट गवर्नमेन्ट म्युजियम तंजौरके एक अंग्रेजी लेखका अनुवाद " जैन हितैषी" भाग १० अंक २ में छापा है उसमें आपने बतलाया है कि:-- - (१) तीर्थकर जीनसे जैनियों के विख्यात सिद्धांतोका प्रचार हुआ है आर्य क्षत्रिय थे।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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