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________________ ( ६६ ) जैन जाति महोदय प्र० प्रकरण. में ऐसी बहुत सी संस्थाएँ अब नीकली हैं ( परन्तु जैनधर्म यह कार्य हजारों वर्षोंसे करता है । 19 ( ४ ) ईसाई धर्म में कहा है कि " अपने प्यारे लोगों पर और अपने शत्रुओं पर भी प्यार करना चाहिए परन्तु यूरोपसे यह प्रेम का तत्व संपूर्ण जातिके प्राणियों की और विस्तृत नहिं हुआ. (१०) पूर्व खानदेश के कलेक्टर साहिब श्रीयुत ऑटोरोयफिल्ड साहिब ७ दिसम्बर सन् १९१४ को पाचोरा में श्रीयुत् वच्छराजजी रूपचंदजी की तरफसे एक पाठशाला खोलने के समय आपने अपने व्याख्यान में कहा कि जैन जाति दयाके लिए खास प्रसिद्ध है, और दयाके लिये हजारों रूपया खर्च करतें हैं । जैनी पहले क्षत्री थे, यह उनके चेहरे व नामसे भी जाना जाता है। जैनी अधिक शान्तिप्रिय हैं । ( जैन हितेच्छु पुस्तक १६ अंक ११ से ) 1 1 (११) मुहम्मद हाफिज सैयद बी. ए. एल. टी. थियॉसॉफिकल हाईस्कुल कानपूर लिखते हैं:- " मैं जैन सिद्धांत के सूक्ष्मतत्वों से गहरा प्रेम करता हूं | ܕܕ (१२) श्रीयुत् तुकाराम कृष्णशर्मा लट्टु बी. ए. पी. एच. डी. एम. आर. ए. एस. एम. ए. एस. बी. एम. जी. ओ. एस. प्रोफेसर संस्कृत शिलालेखादिके विषयकें अध्यापक क्रीन्स कॉलेज बनारस । स्याद्वाद् महाविद्यालय काशीके दशम वार्शिकोत्सव पर दिये हुए व्याख्यान में से कुच्छ वाक्य उधृत | " सबसे पहले इस भारतवर्षमें " रिषभदेवजी " नामके
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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