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________________ जैनेत्तर विद्वानोकि सम्मतिए. (६५) का अकाल मृत्यु होने से उक्त प्रारंभ हुआ कार्य अपूर्ण रह गया है, इत्यादि। (७) पेरीस (फ्रान्स की राजधानी) के डॉक्टर ए. गिरनारने अपने पत्र ता. ३-१३-११ में लिखा है कि मनुष्योंकी तरकी के लिए जैन धर्मका चरित्र बहुत लाभकारी है यह धर्म बहुत ही असली, स्वतंत्र, सादा, बहूत मूल्यवान तथा ब्राह्मणों के मतोसे भिन्न है तथा यह बौद्ध के समान नास्तिक नहीं है। (८) जर्मनी के डाक्टर जोन्सहर्टल ता. १७-६-१९०८ के पत्रमें कहते हैं कि मैं अपने देशवासियों को दिखाउंगा कि कैसे उत्तम नियम और उचे विचार जैनधर्म और जैन आचार्यों में हैं। जैनोका साहित्य बौद्धोंसे बहुत बढ़कर है और ज्यों २ मैं जैनधर्म और उसके साहित्य को समझता हूं त्यों २ मैं उनको अधिक पसंद करता हूं। (९) जैनहितैषी भाग ५ अंक ५-६-७ में मि. जोहन्नेसहटन जर्मनी की चिट्ठी का भाव छपा है उसमें से कुछ वाक्य उधृत. (१) जैन-धर्म में व्याख्यान हुए सुदृढ नीति प्रमाणिकता के मूलतत्व, शील और सर्व प्राणीयोंपर प्रेम रखना इन गुणों की मैं बहुत प्रशंसा करता हूं। (२) जैन-पुस्तको में जिस अहिंसा धर्मकी शिक्षा दी . है उसे मैं यथार्थ में श्लाघनीय समझता हूं। (३) गरीब प्रार्णायों का दुःख कम करनेके लिए जर्मनी
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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