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( ६४ ) जन जाति महोदय प्र० प्रकरण.
अबुलफजल नामक फारसी प्रन्थकार ने “आशोक ने काश्मीर में जैनधर्म का प्रचार किया " एसा कहा है । राजतरंगिणी नामक काश्मीर के संस्कृत इतिहास का भी इस विज्ञान का आधार है।
(२६) उपरोक्त विवेचन से ऐसा मालुम पडता है कि इस धर्म में सुक्षों को आदरणीय जंचने योग्य अनेक बातें हैं । सामान्य लोगों को भी जैनियोंसे अधिक शिक्षा लेना योग्य है। जैन लोगों का भाविकपन, श्रद्धा व औदार्य प्रशंसनीय है।
(३०) जैनियों की एक समय हिन्दुस्तान में बहुत उन्नतावस्था थी । धर्म, नीति, राजकार्य, धुरन्धरता, वाङ्मय (शास्त्र ज्ञान व शास्त्र भंडार ) समाजोन्नति आदि बातों में उन का समाज इतर जनों से बहुत आगे था । संसार में अब क्या हो रहा है इस और हमारे जैन बन्धु लक्ष दे कर चलेंगे तो वह महत्पद पुनः प्राप्त कर लेने में उन्हें अधिक श्रम नहीं पड़ेगा।
( ३१ ) जैन व अमेरिकन लोगों से संघटन कर आने के लिए बम्बई के प्रसिद्ध जैन गृहस्थ परलोक वासी मि० वीरचन्द गांधी अमेरीका को गये थे । वहां उन्हों ने जैनधर्म विषयक परिचय कराने का क्रम भी स्थित किया था।
अमेरीका में गांधी फिलॉसोफिकल सोसायटी, अर्थात् जैन तत्वज्ञानका अध्ययन व प्रचार करने के लिए जो समाज स्थापित हुईवह उन्हीं के परिश्रम का फल है। दुर्दैवसे मि० वीरचन्द गांधी