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जैनेत्तर विद्वानोंकी सम्मतिए.
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का प्रचार अति शीघ्न हुआ, परन्तु जैनधर्म जिन लोगों में है थे प्रायः व्यापार व्यवहार में लगे रहने से धर्म ग्रन्थ प्रकाशन सरीखे कृत्य की तरफ लक्ष देने के लिए अवकाश नहीं पाते इस कारण अगणित जैन ग्रन्थ प्रकाशित पडें हुए हैं 1
(२६) यूरोपियन प्रन्थकारो का लक्ष भी अद्यापि इस धर्म की ओर इखिचा हुवा नहीं दिखाई देता । यह भी इस धर्म के विषय में उन लोगो के अज्ञान का एक कारण है ।
( २७ ) जैनधर्म के कान निर्णय सम्बन्ध में दूसरी ओर के प्रमाण भी आने लगें हैं कोलब्रुक साहिब सरीखे पण्डितोनें भी जैनधर्म का प्राचीनत्व स्वीकार किया है । इतना ही नहीं किन्तु ' बौद्ध धर्म जैनधर्म से निकला हुआ होना चाहिए ' ऐसा विधान किया है । मिस्टर एडवर्ड थाम्स का भी ऐसा ही मत है । उपरोक्त पंडीतने " जैन धर्म ' या " अशोक की पूर्व श्रद्धा नामक ग्रन्थ में इस विषय के जितने प्रमाण दिए हैं सब यदि यहां पर दिए जाय तो बहुत विस्तार हो जायगा ।
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(२८) चन्द्रगुप्त (अशोक जिस का पोता था ) स्वतः जैन था इस बात को वंशावली का दृढ आधार है । राजा चन्द्रगुप्त श्रमण अर्थात् जैनगुरु से उपदेश लेता था ऐसी मेगस्थनीज ग्रीक इतिहासकार की भी साक्षी है ।
x देखो ईसी ट्रेक्ट के पूर्व भाग में पुरुष शिरोमणि पं० बाल गंगाधर तिलक आदि महाशयों की सम्मति ।