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________________ (६२) जैन जातिमहोदय प्र० प्रकरण. श्रद्धा करें तो जैनियों पर नास्तिकत्व का Xआरोप नहीं मा सकता। कारण जैनी परलोक का अस्तित्व मानने वाले है । (२२) सृष्टि का कर्ता कोई ईश्वर है कि नहीं, यह विषय प्रथम से ही बाद प्रस्त है । शास्त्रज्ञों का इस विषय में माज तक एकमत नहीं हुआ। (२३ ) मूर्ति का पूजन श्रावक अर्थात् गृहस्थाश्रमी करते हैं, मुनि नहीं करते । श्रावकों की पूजन विधि प्राय: हम ही लोगों सरीखी है। (२४ ) हमारे हाथ से जीव हिंसा न होने पावे इसके लिये जैनी जितने डरते है इतने बौद्ध नहीं डरते । बौद्ध धर्मी देशों में मांसाहार अधिकता के साथ जारी है । " आप स्वतः हिंसान करके दूसरे के द्वारा मारे हुए बकरे आदि का मांस खाने में कुछ हर्न नहीं " ऐसे सुभीते का अहिंसा तत्व जो बोड़ोंने निकाला था वह जैनियों को सर्वथा स्वीकार नहीं। ___(२५) बौद्ध धर्म के सम्बन्ध में अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं । इस धर्म का परिचय सव को हो गया है । परन्तु जैन-- धर्म के विषय में वैसा अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है । बौद्ध... धर्म चीन, तिबेट, जापानादि देशों में प्रचलित होने से और वि. शेष कर उन देशों में उसे राज्याश्रय मिलने से उस धर्म के शानों x इस विषय में विशेष ज्ञान प्राप्त करने के लिये “ जैनियों के नास्तिका त्व पर विचार " नामक पुस्तक देखें ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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