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________________ (६८) जैन जाति महोदय प्र० प्रकरण. (२) जैनी अवैदिक मारतिय-आर्योका एक विभाग है । (१५) श्री स्वामी विरूपाक्ष बडीयर "धर्मभूषण ' पण्डित' 'वेदतीर्थ ' ' विद्यानिधी' एम. ए प्रोफेसर संस्कृत कॉलेज इन्दोर स्टेट । आपका 'जैनधर्म मीमांसा' नामका लेख चित्रमय जगत में छपा है उसे " जैन पथ प्रदर्शक" आगराने दिपावली के अंक में उधृत कीया है उससे कुछ वाक्य उद्धृत । (१) ईर्षा द्वेषके कारण धर्म प्रचार को रोकनेवाली विपत्ति के रहते हुए जैन शासन कभी पराजित न होकर सर्वत्र विजयी ही होता रहा है। इस प्रकार जिसका वलि है वइ । अर्हत्देव ' साक्षात परमेश्वर (विष्णु) स्वरूप है इसके प्रमाण भी आर्य प्रन्थों में पाये जाते हैं। (२) उपरोक्त अहंत परमेश्वर का वर्णनवेदों में भी पाया जाता है। (३) एक बंगाली बैरिष्टरने प्रेक्टिकल पाय' नामक अन्य बनाया है । उसमें एक स्थान पर लिखा है कि रिषभदेवका नाती मरीची प्रकृतिवादी था, और वेद उसके तत्वानुसार होने के कारण ही ऋग्वेद आदि ग्रंथों की ख्याति उसीके ज्ञानद्वारा हुई है फलतः मरीचिऋषी के स्तोत्र, वेदपुराण आदि ग्रन्थो में हैं और स्थान २ पर जैनतिर्थकरों का उल्लेख पाया जाता है, तो कोई कारण नहीं कि हम वैदिक काल में जैनधर्म का अस्तित्व न माने।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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