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________________ (६०) जैन आति महोदय प्र० प्रकरण, थापि जैनियों ने इसे जिस सीमा तक पहुंचा दिया है वहां तक अद्यापि कोई नहीं गया है। . (१८) अपने धर्म में जिस प्रकार १६ संस्कारों का वर्णन है उसी प्रकार जैनियों में ५३ क्रिय है, उन में बालक के केशवाय अर्थात् शिखा रखना, पांचवें वर्ष में उपाध्याय के पास विद्यारंभ करना, आठवें वर्ष गले में यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहिरना ब्रह्मचर्य पूर्वक विद्याभ्यास करते रहना इत्यादि विषय जैसे अपने धर्मशास्त्र में हैं वैसे ही जैन शास्त्रों में भी हैं । परन्तु हम लोगों में जैसे सम्पूर्ण संस्कार नहीं किये जाते हैं वैसे ही जैनियों की भी दशा है, सेकडो जैनी तो यज्ञोपवीत संस्कार तक नहीं करते । (१६) जैन शास्त्रों में जो यति धर्म कहा गया है वह अत्यन्त उत्कृष्ट है इस में कुछ भी शंका नहीं। (२०) जैनियों मे स्त्रियों को भी यति दीक्षा लेकर परोपकारी कृत्यों में जन्म व्यतीत करने की आज्ञा है । यह सर्वोत्कृष्ट है। हिन्दु समाज को इस विषय में जैनियों का अनुकरण भवश्य करना चाहिये। ___ (२१) ईश्वर सर्वज्ञ, नित्य और मंगल स्वरूप है, यह जैनियों को मान्य है परन्तु वह हमारी पूजन व स्तुति से प्रसन्न होकर हम पर विशेष कृपा करेगा-इत्यादि, ऐसा नहीं है । ईश्वर सृष्टि का निर्माता, शास्ता या संहार कर्ता न होकर अत्यन्त पूर्व अवस्था को प्राप्त हुआ पात्मा ही है ऐसा जैनो मानते है । भक
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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