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जनतर विद्वानोंकी सम्मतिए. (५९) में क्या है, इसकी खोज करे कौन ? ऐसी स्थिति होने से ही जैन धर्म के विषय में झूठे गपोडे उडने लगे । कोई कहता है जैनधर्म नास्तिक है, कोई कहता है. बौद्धधर्म का अनुकरण है, कोई कहता है जब शंकराचार्य ने बौद्धो का पराभव किया तब बहुत से बौद्ध पुनः ब्राह्मण धर्म में आगये । परन्तु उस समय जा थोडे बहुत बौद्ध धर्म को ही पकडे रहे उन्हीं के वंशज यह बैन हैं, कोई कहता है कि जैनधर्म बौद्धधर्म का शेष भाग तो नहीं किंतु हिन्दू धर्म का ही एक पंथ है । और कोई कहते हैं कि नम देव को पूजने वाले जैनी लोग ये मूल में आर्य ही नहीं हैं किन्तु अनार्यों में से कोई हैं। अपने हिंदुस्तान में ही आज चौकसि सौ वर्ष पूर्व से पडौस में रहने वाले धर्म के विषय में जब इतनी अज्ञानता है तब हजारों कोस से परिचय पानेवाले व उससे मनोऽनुकूल अनुमान गढ़नेवाले पाश्चिमात्यों की अज्ञानत पर तो हँसना ही क्या है !
(१६) ऋषभदेव जैनधर्म के संस्थापक थे यह सिद्धान्त अपनी भागवत से भी सिद्ध होता है । पार्श्वनाथ जैनधर्म के संस्थापक थे ऐसी कथा जो प्रसिद्ध है वह सर्वथा भूल है । ऐसे ही बर्द्धमान अर्थात् महावीर भी जैनधर्म के संस्थापक नहीं हैं। वे २४ तीर्थकरो में से एक प्रचारक थे। . (१७) जैनधर्म में अहिंसा तत्व अत्यन्त श्रेष्ठ माना गया है । बौद्ध धर्म व अपने ब्राह्मण धर्म में भी यह तत्व है त